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मणि वरण कुसुम सुगन्ध प्रासुक, अमर तरु के ल्याइये। जिनपद-कमल आगे चढ़ाइये, मदन वाण नसाइये।। श्रीसुमति जिनवर सुमति द्यौ, मुझ पूजिहूँ वसु भेवही।
मैं अनन्त काल अकाज भटक्यो, बिना तेरी तेवही।। ॐ ह्रीं श्रीसुमतिनाथजिनेन्द्राय कामबाण-विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।4।
सरस मोदक मिष्ट घेवर, कनक थाल भराइये। जिन पूजि भव नैवेद्य सेती, क्षुधा रोग नसाइये।। श्रीसुमति जिनवर सुमति द्यौ, मुझ पूजिहूँ वसु भेवही।
मैं अनन्त काल अकाज भटक्यो, बिना तेरी तेवही।। ॐ ह्रीं श्रीसुमतिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।5।
तेज मणिमय दीप सुन्दर, करत मत को नाशही। जिन पूजि भविजन भान सेती, होय ज्ञान प्रकाशही।। श्रीसुमति जिनवर सुमति द्यौ, मुझ पूजिहूँ वसु भेवही।
मैं अनन्त काल अकाज भटक्यो, बिना तेरी तेवही।। ऊँ ह्रीं श्रीसुमतिनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।6।
कर्पूर कृष्णागर सुचन्दन, धूप दहन हुतासन। बरखेय भवि जिनचरण आगे, अष्ट कर्म विनासन।। श्रीसुमति जिनवर सुमति द्यौ, मुझ पूजिहूँ वसु भेवही।
मैं अनन्त काल अकाज भटक्यो, बिना तेरी तेवही।। ऊँ ह्रीं श्रीसुमतिनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।7।
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