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श्रीपद्मप्रभ जिन-पूजा (रचयिता - श्री रामचन्द्र जी)
(दोहा) पदम करम हनि केवल लै भवि बोधिये, करि अघाति निरमूल शिखरतें शिव गये।
आह्वानन संस्थापन मम सन्निहित करूँ, संवौषट् ठः ठः वषट् त्रय उच्चरूँ।। ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। (इति आह्वाननम्)
ऊँ ह्रीं श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम्) ऊँ ह्रीं श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (सन्निधिकरणम्)
अष्टक (चाल जोगीरासा) तनमय झारी भरि करि प्रासुक नीर सुल्याऊँ। जन्मजरामृति नाशनकरण श्रजिन चरण चढ़ाऊँ।। पदम जिनेश्वर पदमादायक घायक हो भवकेरा।
द्वै चेरा प्रभु तुम गुण गाऊँ पाऊँ गुण मैं तेरा।। ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।।।
केसर अगर कपूर सु लैकरि, मेलि घसावें। भव आताप निवारण कारण, श्रीजनपूज रचावें।। पदम जिनेश्वर पदमादायक घायक हो भवकेरा।
द्वै चेरा प्रभु तुम गुण गाऊँ पाऊँ गुण मैं तेरा।। ऊँ ह्रीं श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्राय संसारताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।2।
अछित अखण्डित दीरघ उज्जवल, चन्द्र किरण सम ल्यावै।
श्रीजिनवर पद पूजि मनोहर, तुरत अखै पद पावै।। पदम जिनेश्वर पदमादायक घायक हो भवकेरा।
द्वै चेरा प्रभु तुम गुण गाऊँ पाऊँ गुण मैं तेरा।। ऊँ ह्रीं श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।3।
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