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________________ चौथ असित कार्तिकवि, ध्यान खड्ग गहि वीर। घाति हानि केवल लयो, जजूं ज्ञान हित धीर।।4।। ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णा-चतुर्थ्यां ज्ञानमंगल-मंडिताय श्रीसम्भवनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। चैत शुकल षष्ठी विर्षे, शेष करम निरवार। मोक्षवरांगनपति भये, जजू गुणोध उचार।।5।। ऊँ ह्रीं चैत्रशुक्ला-षष्ठयां मोक्षकल्याणक-मंडिताय श्रीसम्भवनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। जयमाला (दोहा) सम्भव निज सम्भव हो, मो सम्भव हरि नाथ। करूँ बिनती सुमरि गुण, नमूं शीश धरि हाथ।।1।। (अडिल्ल) काल तुर्य गयौ पौण शेष रह्यो पाव ही, उपजे सम्भवनाथ जगत के रावही। माता सेनादेवि जितारि पिता नमू, स्रावस्ती भवथान पूजि अघकू वमू॥1॥ धनुष चारसौ तुंग कनकवपु सोहनो, सठि लख पूरव आयु अश्व चिह्न मोहनो। वंश इक्ष्वाकुसिंगार पूर्व लख तप कियो, घाति कर्म चउजारि ज्ञान केवल लियो।।2।। समोशरण धनदेव रच्यौ शोभा घनी, ग्यारा योजन बीच एक सत पन गनी। बीच महात्रय पीठ कमलपर जिन लसैं, अन्तरीक्ष मुख चार छत्र शशिकू हँसे।।3।। चैसठि चँवर जखेश करें अतिही छज, साढा द्वादश कोडि जाति दुन्दुभि बजे। दिव्य धुनि भवि तारे भव” नाथ जी, मोकू भव” तारि देव! गहि हाथजी।।4।। इह संसार मझारि महादुःख मैं सहूँ, तुमतें छाने नाहि मुख” कहूँ। याते कारज मोहि तुमतें सही, औरनतें कहाकाज शरणि तेरी गही।।5।। तेरो नाम अपार उदधि नवका भली, तेरो नाम उचारि होहि सबही रली। 147
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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