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तेरो नाम जपन्त उरग द्वै माल ही, तेरो नाम जपन्त सिंह द्वै स्यालही।।6।।
तेरो नाम जपन्त रोग सबही टरै, तेरो नाम जपन्त ऋद्धि घर मैं भरे। तेरो नाम जपन्त ज्वाल जल पेखिये, तेरो नाम जपन्त दुरद मृग देखिये।।7।।
तेरो नाम प्रसाद श्वान सुर थाययो, मो मन मैं तुम नाम भली विधि आइयो। तो अब चिन्ता कोन मोक्षि पन पायस्यौं, सुर पद की कहा बात मुक्ति द्वै चायस्यौं।।8।।
दोहा सम्भव जिनकी थुति इहै, जो पढसी मनलाय।
रामचन्द सुख शिव भले, पावै सहज सुभाय।। ऊँ ह्रीं श्री सम्भवनाथ जिनेन्द्राय पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा।
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ।।
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