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मोक्ष महामग रोक रह्यो, अन्तराय कर्म बल मो रोधा। फल प्रासुक लाऊँ, तोहि चढ़ाऊँ, मोक्ष मिलावो हो बोधा।।
सम्भव भव तोर्यो, मोह मरोर्यो जोर्यो आतमसों नेहा।
हूँ पूजू, ध्याऊँ, शीश नवाऊँ, तारि-तारि विमल जु केहा।। ऊँ ह्रीं श्रीसम्भवनाथजिनेन्द्राय मोक्षमहाफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
शुचि निर्मल नीरं, गन्ध गहीरं, तन्दुल पुष्पं चरु लायो। मणि दीपं धूपं, फल सु अनूपं, अरध रामचन्द्र करि गायो।।
सम्भव भव तोर्यो, मोह मरोर्यो जोर्यो आतमसों नेहा।
हूँ पूजू, ध्याऊँ, शीश नवाऊँ, तारि-तारि विमल जु केहा।। ऊँ ह्रीं श्रीसम्भवनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
पंचकल्याणक (दोहा) फाल्गुन सुदी अष्टमी, चये नव ग्रीवकतै इन्द्र।
सेना दे उर अवतरे, जनूं धर्म के कन्द।।1।। ऊँ ह्रीं फाल्गुन शुक्ला-अष्टम्यां गर्भकल्याणक-प्राप्ताय श्रीसम्भवनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
कातिक सुदी पूनम सुरा, सम्भव सुर गिरि लेय। जन्म महोत्सव करि जजे, हम पूजें गुण ध्येय।।2।। ऊँ ह्रीं कार्तिकशुक्ला-पूर्णिमायां जन्ममंगल-मंडिताय श्रीसम्भवनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
पूनम मगसिर शुकलही, जगतराज्य तजि देव। तप धरि मुनि द्वै वन बसे, जजू चरण वसु भेव।।3।। ऊँ ह्रीं मार्गशीर्षशुक्ला-पूर्णिमायां तपोमंगल-मंडिताय श्रीसम्भवनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
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