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यो काम महाबल, वसि करि लीनों, हरि हर पृथिवी के सारे। मैं पूजन आयो, प्रासुक लायो, कुसुम मदनसर हरि प्यारे।।
सम्भव भव तोर्यो, मोह मरोर्यो जोर्यो आतमसों नेहा।
हूँ पूजू, ध्याऊँ, शीश नवाऊँ, तारि-तारि विमल जु केहा।। ॐ ह्रीं श्रीसम्भवनाथजिनेन्द्राय कामबाण-विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
यह क्षुधा हत्यारी, अति दुखकारी, मोहि सतावत है तातें। वर मोदक ल्यायो, पूजन आयो, हरी वेदना प्रभु यातें।। सम्भव भव तोर्यो, मोह मरोर्यो जोर्यो आतमसों नेहा।
हूँ पूजू, ध्याऊँ, शीश नवाऊँ, तारि-तारि विमल जु केहा।। ॐ ह्रीं श्रीसम्भवनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
मोह महातम छाय रह्यो, मम ज्ञान हन्यौ, अति दुख दीनो। मणि दीपक ल्यायो, ध्वान्त नसायो पूजत पद चेतन चीनो।।
सम्भव भव तोर्यो, मोह मरोर्यो जोर्यो आतमसों नेहा।
हूँ पूजू, ध्याऊँ, शीश नवाऊँ, तारि-तारि विमल जु केहा।। ऊँ ह्रीं श्रीसम्भवनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
ये दुष्ट जु कर्म बड़े अधर्म, दुःख देवें कबलौं गावें। कृष्णागर धूपं, मलय अनूपं, पद खेवें लहु जरि जावें।। सम्भव भव तोर्यो, मोह मरोर्यो जोर्यो आतमसों नेहा।
हूँ पूजू, ध्याऊँ, शीश नवाऊँ, तारि-तारि विमल जु केहा।। ऊँ ह्रीं श्रीसम्भवनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
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