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संसार-कष्ट चकचूर चूर, सहजानन्द मम उर पूर पूर। निज-पर-प्रकाश-बुधि देइ देइ, तजिके विलंब सुधि लेइ लेइ॥13॥
हम जांचत हैं यह बार-बार, भवसागरतें मो तार-तार। नहिं सह्यो जात यह जगत दुःख, तातें विनवौं हे सुगुन-मुक्ख।।14।।
घतानन्द श्रीनेमिकुमारं जितमदमारं, शीलागारं, सुखकारं। भव-भय-हरतारं, शिव-करतारं, दातारं धर्माधारं।।15।। ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय जयमाला-महायँ निर्वपामीति स्वाहा।
(मालिनी) सुख धन जस सिद्धी पुत्र पौत्रादि वृद्धी।। सकल मनसि सिद्धी होतु है ताहि रिद्धी।। जजत हरषधारी नेमि को जो अगारी।। अनुक्रम अरि जारी सो वरे मोक्षनारी।।
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ।
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