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जयमाला (दोहा)
श्याम छवी तनु चाप दश, उन्नत गुननिधि-धाम । शंख-चिह्न पद में निरखि, पुनि-पुनि करों प्रनाम।। 1 । (पद्धरी छंद)
जै जै जै नेमि जिनिंद चन्द, पितु-समुद देन आनन्दकन्द। शिवमात-कुमुद-मनमोददाय, भविवृन्द-चकोर सुखी कराय।।2।
जयदेव अपूरव मारतंड, तुम कीन ब्रह्मसुत सहस खंड | शिवतिय-मुख-जलज-विकाशनेश, नहिं रहो सृष्टि मेंतम अशे॥3॥ भविभीत-कोक कीनों अशोक, शिवमग दरशयो शर्म थोक जै जै जै जै तुम गुनगंभीर, तुम आगम - निपुन पुनीत धीर।4। तुम केवलजोति-विराजमान, जै जै जै जै करुना निधान । तुम समवसरन में तत्त्वभेद, दरशायो जातें नशत खेद || 5 || तित तुमको हरि आनंदधार, पूजत भगतीजुत बहु-प्रकार। पुनि गद्य-पद्यमय सुजस गाय, जै बल - अनंत गुनवंतराय।।6।। जय शिवशंकर ब्रह्मा महेश, जय बुद्ध विधाता विष्णुवेष | जय कुमति-मतंगन को मृगेंद्र, जय मदन-ध्वांतकों रवि जिनेंद्र || 7 | जय कृपासिंधु अविरुद्ध बुद्ध, जय रिद्धि-सिद्धि - दाता प्रबुद्ध जय जगजन-मन-रंजन महान, जय भवसागर मँह सुष्टु यान ॥ 8 ॥ भगति करें ते धन्य जीव, ते पावैं दिव शिवपद सदीव ।
देव विविध प्रकार, गावत नित किन्नर की जु नार||9|| वर भगत माहिं लवलीन होय, नाचें ताथेई थेईथेई बहो ।
मैं
तुम करुणासागर सृष्टिपाल, अब मोकों वेगि करो निहाल ॥10॥ दुख अनंत वसु-करम-जोग, भोगे सदीप नहिं और रोग। तुमकों जगमें जान्यो दयाल, हो वीतराग गुन रतन - माल।।11।। तातें शरना अब गही आय, प्रभु करो वेग मेरी सहाय। यह विघन-करम मम खंड-खंड, मनवांछित कारज मंड-मंड || 12 ||
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