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इक-बे-ते-चौ-इन्द्रीय-जात, थावर आतप उद्योत घात। सूच्छम-साधारन एक चूर, पुनि दुतिय - अंश वसु कर्यो दूर 16
चौ-प्रत्याप्रत्याख्यान चार, तीजे सु नपुंसक-वेद टार। चौथे तिय-वेद विनाश कीन, पांचें हास्यादिक छहों छीन । 7 । नर-वेद छठें छय नियत धीर, सातयें संज्वलन-क्रोध चीर । आठवें संज्वलन-मान भान, नवमें माया-संज्वलन हान ।8। इमि घता नवें दशमें पधार, संज्वलन-लोभ तित हूँ विदार। पुनि द्वादशके द्वय-अंश माँहिं, सोलह चकचूर कियो जिनाहिं | 9 | निद्रा-प्रचला इक भाग माहिं, दुति-अंश चतुर्दश नाश जाहिं । ज्ञानावरनी-पन दरश-चार, अरि अंतराय - पांचों प्रहार | 10 इमि छय-त्रेशठ केवल उपाय, धरमोपदेश दीन्हों जिनाय । नव-केवललब्धि-विराजमान, जय तेरमगुन - थिति गुनअमान। 11। गत चौदहमें द्वै भाग तत्र, क्षय कीन बहत्तर तेरहत्र । वेदनी - असाताको विनाश, औदारि - विक्रिया-हार नाश | 12 | तैजस्य-कारमानों मिलाय, तन पंच-पंच बंधन विलाय । संघात-पंच घाते महंत, त्रय - अंगोपांग सहित भनंत। 13। संठान-संहनन छह-छहेव, रस- वरन - पंच वसु-फरस भेव । जुग-गंध देवगति-सहित पुव्व, पुनि अगुरुलघू उस्वास दुव्व। 14।
पर-उपघातक सुविहाय नाम, जुत-अशुभगमन प्रत्येक खाम। अपरज थिर-अथिर अशुभ- सुभेव, दुरभाग सुसुर- दुस्सुर अभेव। 15। अन-आदर और अजस्य - कित्त, निरमान नीच - गोतौ विचित्त । ये प्रथम बहत्तर दिय खपात, तब दूजे में तेरह नशाय।16। पहले सातावेदनी जाय, नर-आयु मनुष-गति को नशाय। मानुषगत्यानु सु पूरवीय, पंचेन्द्रिय- जात प्रकृति विधीय।17। त्रस-बादर परजापति सुभाग, आदर-जुत उत्तम गोत पाग। जसकीरती तीरथप्रकृति-जुक्त, ए तेरह छयकरि भये मुक्त। 18।
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