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जय गुनअनंत अविकार धार, वरनत गनधर नहिं लहत पार।
ताकों मैं वंदौं बार बार, मेरी आपत उद्धार धार।191 सम्मेदशैल सुरपति नमंत, तव मुकतथान अनुपम लसंत। वृन्दावन वंदत प्रीति-जय, मम उरमें तिष्ठहु हे जिनाय।20।
घत्तानन्द जय-जय जिनस्वामी, त्रिभुवननामी, मल्लि विमल-कल्यानकरा।
भवदंद-विदारन आनंद-कारन, भविकुमोद निशिईश वरा।21। ऊँ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय जयमाला-महायँ निर्वपामीति स्वाहा।
(शिखरिणी) जजें हैं जो प्रानी दरब अरु भावादि विधिसों, करें नाना भाँति भगति थुति औ नौति सुधिसों। लहै शक्री चक्री सकल सुख सौभाग्य तिनको, तथा मोक्षं जावे जजत जन जो मल्लिजिनको।।
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ।
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