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________________ प्रकीर्णक-पुस्तकमाला नहीं है । इसलिये इन दोन पद्योंका कथन युक्ति और भागमसे विरुद्ध है। इनमसे पहला पद्य श्वेताम्बरोंके 'विवेकविलास'का पद्य है, जैसा कि ऊपर जाहिर किया गया है। (२) इस ग्रंथके पूजनाध्यायमें, पुष्पमालाओंसे पूजनका विधान करते हुए, एक स्थानपर लिखा है कि चम्पक और कमलके फूलका उसकी कली आदिको तोड़नेके द्वारा भेद करनेसे मुनिहत्याके समान पाप लगता है। यथा :-- “नैव पुष्पं द्विधाकुर्यान्न बिंद्यात्कलिकामपि । चम्पकोत्पलभेदेन यतिहत्यासमं फलम् ॥१२७॥” यह कथन बिलकुल जैनसिद्धान्त और जैनागमक विरुद्ध है। कहाँ तो एकेद्रिय फूलकी पंखड़ी आदिका तोड़ना और कहाँ मुनिकी हत्या ! दोनोंका पाप कदापि समान नहीं हो सकता । जैनशास्त्रोंमें एकेंद्रिय जीवोंके घातसे लेकर पचंद्रिय जीवोंके घातपर्यंत और फिर पंचंद्रियजीवोंमें भी क्रमशः गौ, स्त्री, बालक सामान्य मनुष्य, अविरतसम्यग्दृष्टि, व्रती श्रावक और मुनिके घातसे उत्पन्न हुई पापकी मात्रा उत्तरोत्तर अधिक वर्णन की है। और इसीलिये प्रायश्चित्तसमुच्चयादि प्रायश्चित्तग्रंथों में भी इसी क्रमसे हिंसाका उत्तरोत्तर अधिक दंड विधान कहा गया है । कर्मप्रकृतियोंके बंधादिकका प्ररूपण करनेवाले और 'तीव्रमंदज्ञातभावाधिकरणवीर्यविशेषेभ्यस्तद्विशेषः' इत्यादि सूत्रोंके द्वारा कर्मासवोंकी न्यूनाधिकता दर्शानेवाले सूत्रकार महोदयका ऐसा असमंजस वचन, कि एक फूलकी पंखड़ी तोड़नेका पाप मुनि हत्याके समान है, कदापि नहीं हो सकता । इसी प्रकारके और भी बहुतसे असमंजस और अागमविरुद्ध कथन इस ग्रन्थमें पाये जाते हैं, जिन्हें इस समय छोड़ा जाता है। जरूरत होनेपर फिर कभी प्रगट किये जायेंगे । __ जहाँतक मैंने इस ग्रन्थको परीक्षा की है, मुझे ऐसा निश्चय होता है और इसमें कोई संदेह बाकी नहीं रहता कि यह ग्रंथ सूत्रकार भगवान्
SR No.009242
Book TitleUmaswami Shravakachar Pariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year1944
Total Pages44
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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