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________________ उमास्वामि-श्रावकाचार-परीक्षा इसी प्रकार दूसरे स्थानपर लिम्बन हैं कि जो मनुष्य फटे पुगने, यंडित या मैले वस्त्रोंको पहिन कर दान, पूजन, तप, होम या स्वाध्याय करता है तो उसका ऐसा करना निष्फल होता है । यथा :"खंडिते गलिते छिन्नं मलिने चैव वाससि । दानं पूजा तपो होमः म्वाध्यायो विफलं भवेत् ||१३६।। मालूम नहीं होता कि मंदिरक ऊपरकी ध्वजाका इस पूजनादिकके फलके साथ कौनमा सम्बन्ध है और जैनमतकं किस गूढ सिद्धान्तपर ग्रंथकारका यह कथन अवलम्बित है। इसी प्रकार यह भी मालूम नहीं होता कि फटे पुराने तथा खंडित वस्त्रोंका दान, पूजन, तप और स्वाध्यायादिके फलसे कौनसा विरोध है जिसके कारण इन कार्योंका करना ही निरर्थक हो जाता है । भगवदुस्वामीने तत्त्वार्थ सूत्रमें और श्रीअकलंकदेवादिक टीकाकारोंने 'राजवार्तिक' श्रादि ग्रंथोंमें शुभाशुभ कमांक अास्रव और वन्धके कारणांका विस्तारके साथ वर्णन किया है। परन्तु ऐसा कथन कहीं नहीं पाया जाता, जिममे यह मालूम होता हो कि मन्दिरकी एक ध्वजा भी भावपूर्वक किये हुए पृजनादिकक फलको उलटपुलट करदेनेमें समर्थ है। सच पूछिये तो मनुष्यके कमाका फल उसके भावोंकी जाति और उनकी तरतमतापर निर्भर है। एक गरीब आदमी अपने फटे पुराने कपड़ोंको पहने हुए ऐसे मन्दिरमें जिसके शिवरपर ध्वजा भी नहीं है, बड़े प्रेमके साथ परमात्माका पूजन और भजन भी कर रहा है और सिरसे पैरतक भक्तिरसमें डूब रहा है, वह उस मनुष्यसे अधिक पुण्यउपान करता है जो अच्छे सुन्दर नवीन वस्त्रांको पहने हुए ध्वजावाले मन्दिरमें बिना भक्तिभावके, सिर्फ अपने कुलकी रीति समझता हुआ, पूजनादिक करता हो । यदि ऐसा नहीं माना जाय अर्थात् यह कहा जाय कि फटे पुराने वस्त्रोंक पहनने या मन्दिरपर ध्वजा न होनेके कारण उस गरीब आदमीके उन भक्ति-भावोंका कुछ भी फल नहीं है तो जैनियोंको अपनी कर्म-फिलासोफीको उठाकर रख देना होगा। परन्तु ऐसा
SR No.009242
Book TitleUmaswami Shravakachar Pariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year1944
Total Pages44
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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