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________________ उमास्वामि-श्रावकाचार-परीक्षा ध-विवेकविलास( श्वे० प्रन्थ )से "प्रारभ्यैकांगुलादिम्बाद्यावदेकादशांगुलं । (उत्तरार्ध)॥१०३।। गृहे संपूजयेद्विम्बमूवं प्रासादगं पनः। प्रतिमा काष्ठलेपाश्मस्वर्णरूप्यायसां गृहे ॥ १०४ ॥ मानाधिकपरिवाररहिता नैव पूजयेत् । (पूर्वार्ध ) ॥ १५ ॥ प्रासादे ध्वजनिर्मक्त पूजाहोमजपादिकं । सर्व विलुप्यते यस्मात्तस्मात्कार्यों ध्वजोच्छ्रयः ।। १०७ ॥ अतीताव्दशतं यत्स्यात यच्च स्थापितमुत्तमैः । तद्वंथगमपि पूज्यं स्याद्विम्बं तनिष्फलं न हि ।। १०८ ॥" ये सब पद्य जिनदत्तमूरिकृत 'विवेकविलाम के प्रथम उल्लासमें क्रमशः नं० १४४, १४५, १७८ और १४० पर दर्ज हैं और प्रायः वहींसे उठाकर यहाँ रक्खे गये मालूम होते हैं । ऊपर जिन उत्तरार्ध और पूर्वाधोंको मिलाकर दो कोष्टक दिये गये हैं, विवेकविलासमें ये दोनों श्लोक इसी प्रकार स्वतन्त्र रूपसे नं० १४४ और १४५ पर लिखे हैं। अर्थात् उत्तराधको पूर्वाध और पूर्वाधको उत्तराधं लिखा है । उमास्वामि-श्रावकाचारमें उपर्युक्त श्लोक नं० १०३ का पूर्वार्ध और श्लोक नं० १०५ का उत्तरार्ध इस प्रकारसे दिया है :-- "नवांगुले तु वृद्धिः स्यादुद्वेगस्तु षडांगुले ( पूर्वार्ध) १०३॥" "काष्ठलेपायसां भूताः प्रतिमाः साम्प्रतं न हि (उत्तरार्ध)१०॥" श्लोक नं० १०५ के इस उत्तराधसे मालूम होता है कि उमास्वामिश्रावकाचारके रचयिताने विवेकविलासके समान काष्ठ, लेप और लाहेकी प्रतिमाओंका श्लोक नं० १०४ में विधान करके फिर उनका निषेध इन मुद्रित विवेकविलासमें 'स्वर्णरूप्यायसां' की जगह 'दन्तचित्रायसां' पाठ दिया है। - -- - -- - - -
SR No.009242
Book TitleUmaswami Shravakachar Pariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year1944
Total Pages44
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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