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________________ [ ९१ ] हुए, एक स्थान पर लिखा है कि विदेहक्षेत्रके चक्रवर्तीने एक दिन मुनिजीसे आहारक लिये विहारको प्रार्थना की, जिसके उत्तरमें उन्होंने कहा-'तुम्हें क्या मालूम नहीं कि इस क्षेत्रमें मेरे आहारको योग्यता नहीं है ?' इस पर चक्रवर्तीने योग्यता न होनेका कारण पूछा, तब कुन्दकुन्दने उत्तर दिया: मक्षेत्रे ह्यधना रात्रिः त्वत्क्षेत्रे ह्यधना दिवा । भारतजोऽप्यहं न्यादं कथं कुर्वेऽत्र दोषदम् ॥२३॥ अर्थात्-मैं मारनमें उत्पन्न हुआ हूँ, तुम्हारे क्षेत्रमें इस समय दिन होने पर भी मेरे क्षेत्र में इस वक्त रात्रि है, तब मैं इस समय (जब कि मेरे हिसाबले गत्रि है) यहां भोजन कैसे करूं ? वह दोषकारी है-रात्रि भोजनके दोषको लिये पाठकजन ! देखा, देशकालादिके अनुसार वर्तन करने वाले एक महामुनिके द्वारा दिया हुआ यह कैसा विचित्र उत्तर है और इसमें कुन्दकुन्दकी कैसी अनोखी श्रदाका उल्लेख किया गया है ! जबकि विदेह क्षेत्र में खूब दिन खिल रहा था, सूर्यका यथेष्ट प्रकाश हो रहा था, शुद्ध एवं निर्दोष भोजनकी सब व्यवस्था मौजूद थी और दूसरे महान् मुनिजन भी आहार के लिये जा रहे थे तथा भोजन कर रहे थे, तब कुन्दकुन्दका उस समयको रात्रि बतला कर भोजन करनेसे इनकार करना और उस भोजनको सदोष मानना अथवा महज़ इस वजहसे भोजन न करना कि उस समय भारतमें रात्रि है-भोजन करनेसे रात्रिभोजनका दोष लगेगा, कितना हास्यास्पद है, इसे पाठक स्वयं समझ सकते हैं । इससे तो वहाँ रात्रिके समय, जब कि भारत में दिन था, कुन्दकुन्दका भोजन कर लेना निर्दोष ठहरता है ! फिर, उसे उन्होंने क्यों नहीं अपनाया और क्यों
SR No.009241
Book TitleSuryapraksh Pariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year1934
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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