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________________ समाज-संगठन वरण ठोक नहीं होगा--तब तक हम अपनी स्थितिको भी जैसा चाहिये वैसा नहीं सुधार सकते । इसलिये समाज सङ्गठनके अभि प्रायसे-वायुमंडल को सुधारनेकी दृष्टिसे-उन्हें अपने कुटुम्बके सुव्यवस्थित करनेमें कोई भी बात उठा न रखनी चाहिए। इस प्रकारके प्रयत्नसे सब कुटुम्बोंके सुव्यवस्थित हो जानेपर जो स्वच्छ वायु-धारा बहेगी वह सभीके लिए स्वास्थ्यप्रद होगी और उनमें रह कर सभी लोग अपना कल्याण कर सकेंगे। प्रत्येक कुटुम्बको 'सुव्यवस्थित और बलाढ्य' बनानेके लिए उसके प्रधान पुरुषोंको इन बातोंपर ध्यान रखनेकी खास जरूरत है (१) स्वयं सदाचारसे रहना और अपने कुटुम्बियों तथा अश्रिनोंको सदाचारके मार्ग पर लगाना। ऐसा कोई काम न करना जिसका समाज पर बुरा असर पड़े। (२) अपने बुद्धि-बल, शरीर-बल और धन-बलको बराबर बढ़ाते रहना और सदा प्रसन्नचित रखनेकी चेष्टा करना। । (३) सबके दुख-सुखका पूरा खयाल रखना, सबको परस्पर प्रेम तथा विश्वास करना सिखलाना और दुखियोंके दुख दूर करने का प्रयत्न करना । साथ ही, किसीपर अत्याचार न करना और दूसरों के द्वारा होते हुये अत्याचारोंको यथाशक्ति रोकना। (४) वीर्यका दुरूपयोग न करके प्रायः संतानके लिए ही मैथुन करना । किसी व्यसनमें न फसना और जितेन्दिय रहना। (५) स्वयं कुसङ्गतिसे बचना और अपने परिवारके लोगोंको बचाते रहना । साथ ही अपनी संतानका कभी बाल्यावस्थामें विवाह न करना। . (६) संतानकी तथा अन्य कुटुम्बियोंकी शिक्षाका समुचित प्रबन्ध करना, उन्हें धर्मके मार्गपर लगाना और ऐसी शिक्षा देना
SR No.009239
Book TitleSamaj Sangathan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year1937
Total Pages19
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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