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________________ वह बालक तो ऊपर पहुंचने के लिए उतावला था । उसने उन्हें क्षणभर रुकने का भी मौका नहीं दिया और सीधा ऊपर ले गया। वे सब मेरे वहां पहुंचने से पन्द्रह मिनट पहले ही 'रामपोल' पहुंच गये। मेरे भाई ने मुझसे कहा कि इस बालक में आदीश्वर भगवान के दर्शन करने और पूजा करने की इच्छा इतनी तीव्र है कि वह सारे समय चलने के बजाय दौड़ता ही रहा है। पूजा के पांच स्थान और तीन परिक्रमायें : आमतौर पर यात्री पांच स्थानों की पूजा करके और मुख्य मंदिर की तीन परिक्रमायें देकर बाद में मूलनायक भगवान के दर्शन करते हैं। (१) शान्तिनाथ का मन्दिर (२) नया आदीश्वर मन्दिर (३) आदीश्वर चरण-छतरी (४) सीमंधर स्वामी का मन्दिर (५) पुंडरीक स्वामी का मन्दिर जब हम लोग कमशः इन स्थानों पर पूजा करने गये तो बालक ने कहा कि उसने पहले तीन मन्दिरों में तो पहले भी पूजा की थी, अन्तिम दो में नहीं की थी। मुख्य मंदिर में बालक के पूजाभाव : मुख्य मन्दिर के चौक में घुसने के बाद जब सीढियां चढकर हम ऊपर के चौक में पहुंचे तो बालक ने तुरन्त अत्यन्त उत्साह के साथ 'मूलनायक' की ओर संकेत करके कहा कि इन्हीं आदीश्वर भगवान की उसने पूर्वजन्म में पूजा की थी। मन्दिर के मुख्य मण्डप में पहुंचकर उसे बहुत प्रसन्नता हुई। बालक के साथ हम लोगों ने पूजा की, उसके बाद बालक मूर्तिवत् 'कायोत्सर्ग' ध्यान में खड़ा हो गया। उसकी खुली हुई आंखें बिना पलक झपके आदीश्वर भगवान पर स्थिर थी, वह इस ध्यानमुद्रा में अपने-आपको भूल गया । मन्दिर में जो कुछ हो रहा था उसे भी भूल गया, सैंकडों यात्रियों के शोर-शराबे और पूजा-संगीत के गुंजन को लगभग आधे घंटे तक वह भूलाये रहा । अनेक साधु, साध्वियां, गृहस्थ स्त्री-पुरुष इस छोटे बालक के 'दर्शन और ध्यान' को देखकर चकित हो गये । लगभग आधे घंटे तक के अनवरत मुग्ध 'ध्यान' के पश्चात् मैंने उसके कंधे थपथपाये तब वह चौक कर होश में आया। ध्यान में जो स्वर्गीय आनन्द उसे प्राप्त हुआ उसका वर्णन करना उसके सामर्थ्य के बाहर था। शांत-मृति मुनि कपूरविजयजी बालक के पास बैठे हुए बराबर उसकी तरफ देख रहे थे। उन्होंने बाल की उच्च ध्यानावस्था पर अनावश्यक विघ्न डालने के मेरे कार्य को ठीक नहीं माना। सङ्गमरमर का छोटा हाथी : ४-५ पुजारियों में से एक बूढे चौबदार को बालक पहचान गया और उसकी तरफ इशारा करके बोला कि - "यही सदा केसर की प्याली उस छोटे से संगमरमर के हाथी पर रखता था, यहां से वह घुटी हुई केसर मैं अपने पंजों में उठाता था और आदीश्वर भगवान की पूजा करता था।" बालक उस छोटे हाथी के पास हमें ले गया जो बड़े हाथी के दाहिनी तरफ था, और इसलिए जो यात्री बाई तरफ पूजा के लिए बैठते थे उनकी निगाहों से वह हाथी छिपा रहता था। मैंने भी पहले इस हाथी को नहीं देखा था।
SR No.009238
Book TitlePunarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherMission Jainatva Jagaran
Publication Year2015
Total Pages28
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size86 KB
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