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आदीश्वर भगवान की प्रथम पूजा :
बालक के अद्भुत तथा आनन्दपूर्ण भावों को अभिव्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। उस समय जो प्रेरणा उसमें उत्पन्न हुई वह मेरी समझ के बाहर थी। ऐसा दिखता था कि वह सबका स्वामी हो। उसके भाव उस समय एक ऐसे योद्धा के भाव से मिलते-जुलते थे जिसने किसी प्रबल शत्रु को हराने के बाद हारे हुए शत्रु की राजधानी में विजयोत्सव मनाते हुये प्रवेश किया हो। फिर बालक का ध्यान प्रथम पूजा की तरफ गया। वहां के प्रचलित रिवाज के अनुसार सबसे ऊंची बोली लेकर मैंने ध, फल, केसर, फूल, मुकुट और आरती की पहली पुजाएं प्राप्त की। भक्तिभाव से बालक भी अपनी बचत राशि से तुरंत फुरती से जाकर बहुत सारे फूल और मालाएं खरीद कर लाया। उसने एक के बाद एक ये सब पूजाएं बहुत ध्यान तथा भक्ति से की। उसे इस बात की प्रसन्नता थी कि पक्षी से मनुष्य योनि पाने के बाद पुनः अपने भगवान की पूजा करने का महान सौभाग्य उसे प्राप्त हुआ था।
बालक का व्रतः बालक अपने ३१ दिन के यात्रा काल में प्रतिदिन पर्वत पर आदिश्वर भगवान की पूजा किये बिना अन्न-जल ग्रहण नहीं करता था। अपने व्रत को दृढता के लिए वह मनि कपरविजयजी की मन्दिर में आने की प्रतीक्षा करता था। उनके आने पर वह उनके पास जाकर उनकी वंदना करता तथा दोपहर के पहले अन्न-जल ग्रहण न करने के अपने दैनिक व्रत को दुहराकर पक्का कर लेता।
बालक की परीक्षा : १२-३० बजे पूजा समाप्त करने के बाद हम नीचे उतरने की
तैयारी कर रहे थे। बालक की जांच करने के लिए मैंने उसे कुछ खाना खा लेने के लिए कहा ( यद्यपि मैं उसके लिए कोई भोजन नहीं लाया था।) बालक ने मेरी तरफ देखा और विनोद में उसने पूछा, "क्या आपको भूख लगी है? काका साहब ! मुझे लगता है कि आदीश्वर भगवान की पूजा के बाद आपको भूख लग आई। मुझे तो भूख नहीं लगी है। मेरा पेट तो इस बात से ही भर गया है कि अपने एक जन्म में इतनी जल्दी आदीश्वर भगवान की मैं पूजा कर सका।" मैंने बातचीत का रूख बदल दिया और कहा मेरे साथ डोली में चलो लोकिन वह पैदल चलने के व्रत पर अडिग था। आचार्य (तब मुनि) अजितसागरजी ने बालक को मेरे साथ डोली में चले जाने के लिए राजी करना चाहा । पर वह राजी नहीं हआ और पैदल ही पहाड से उतरा। रास्ते में अनेक लोगों ने उससे पानी पीने को कहा, पर उसने इन्कार कर दिया। बल्कि उसने यात्रियों को झिडका और कहा कि इस पवित्र पर्वत पर खाने का व पानी पीने का रिवाज बिल्कुल छोड़ देना चाहिए। उसने दोपहर के बाद ढाई बजे धर्मशाला में पहुंच कर हि भोजन किया।
हजारों यात्री बालक से मिले:
वढवाण की भांति पालीताना में भी बालक से प्रतिदिन मिलने के लिए बड़ी संख्या में यात्री आते थे और बालक की वह कडी परीक्षा संध्या को देर तक चलती थी। सेठ गिरधर भाई आनन्दजी, भावनगर के सेठ अमरचन्द घेलाभाई तथा अन्य कई लोग बालक से अनेक प्रश्न करते थे और उन्हें संतोष जनक उत्तर प्राप्त होता था।
बालक का वृत्तांत : पालीताना के यात्रियों ने सिद्धवड में उसका घोंसला