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काका साहब ! जल्दी करिए, हम तुरन्त पहाड पर चलें।"
पहाड के नीचे : बाबू माधोलाल की धर्मशाला में ठहरने का इन्तजाम करके हम लोग शाम को पहाडी के नीचे पहंचे। जब हम लोगों ने रिवाज के मुताबिक वंदन किया तो बालक ने पहले स्तुति की और फिर जमीन पर लेटकर पूरा दण्डवत् किया, उसने इस पवित्र भूमि का बहुत प्रेम से आलिंगन किया, लगता था जैसे बालक मुग्ध हो गया हो। वह तलहटी के एक सिरे से दूसरे सिरे तक लगभग १५ बार लोटा होगा। उसने उस समय पहाड पर जाने के लिए अत्यन्त उत्साहपूर्वक हम लोगों से कहा। पर बाद में मेरे समझाने पर दूसरे दिन प्रात:काल पहाडी पर जाने के लिए वह राजी हो गया।
तीन मील के बजाय तीन सीढियाँ :
जब हम लोग प्रात:काल ४ बजे यात्रा के लिए उठे तो बालक पहले से ही जाग रहा था। तलहटी में पूजा-प्रार्थना के पश्चात् कमजोरी के कारण मैंने पहाड पर आने-जाने के लिए 'डोली' किराये पर ली थी। मैं बच्चे को अपने साथ डोली में बैठाकर ले जाना चाहता था, उसने मेरे साथ डोली में बेठने से इन्कार कर दिया और पर्वत के शिखर की तरफ निगाह फैलाते हुए कहा, "आप यहां से चोटी तक कितनी दूरी समझते हैं ?" मैंने कहा, "लगभग तीन मील।" उसने प्रफुल्लता से कहा - "यह तो केवल सीढ़ियों की तीन कतारें ही है, तीन मील नहीं। मैं पहाड़ पर पैदल जाऊगा। आप भी पैदल चलें" ऐसा कहकर बिना मेरा इन्तजार किये मुझे पीछे छोड़कर उसने मेरे भाई की अंगुली पकड ली और खुशी-खुशी पहाड़ की ओर पैदल चल पड़ा।
बिना रुके चढ़ाई: मेरे भाई ने मुझे बताया कि पूरे रास्ते बालक सम्मोहन जैसी अवस्था में पर्वत के शिखर की ओर तेजी से बढ़ता गया। उसे उबडखाबड जमीन का कोई ध्यान ही नहीं था। आमतौर पर छोटी उम्र के बालक इस मौके के लिए किराये पर तय किये हुए कुलियों के कंधों पर ले जाये जाते हैं। कुली मेरे भाई के पास आये और उन्होंने कंधे पर बच्चे को न ले जाने के सम्बन्ध में उनकी बेरहमी और दयाहीनता की निंदा की। कुछ कुलियों ने बिना पैसे लिए ही बच्चे को ले जाने को कहा। जब इस प्रकार की फटकारें असह्य हो गई तो मेरे भाई ने कलियों से कहा कि अगर तुममें से कोई भी बालक को कंधे पर चढाने के लिए राजी कर लें तो मैं दुगुना किराया दूंगा। कुछ कुलियों ने बालक के पास पहुंचने का प्रयत्न किया। लेकिन बालक ने घृणापूर्वक उनका स्पर्श करने से इन्कार कर दिया। यही नहीं, उसने उन्हें पहाड पर जाने में विघ्न डालने के बारे में बुरा-भला भी का। इस प्रकार का बर्ताव पहले दिन ही हुआ, उसके बाद तो वे कुली भी समझ गये कि यह बालक पदयात्रा ही करना चाहता है। तत्पश्चात् सब लोग बालक को आदर और सराहना की निगाह से देखने लगे। वे उसके लिए रास्ता छोड देते थे और उसके साहस, उसकी आश्चर्यजनक शक्ति और धीरज के लिए उसे आशीर्वाद देते थे।
चढ़ाई के मध्य में एक स्थान बहुत सीधी चढ़ाई का है और सभी यात्री 'हिंगलाज का हडा' नामक इस स्थान पर कुछ समय के लिए आराम करते हैं। मेरे भाई तथा परिवार के अन्य सदस्य आगे बढ़ने के पहले थोडा आराम करना चाहते थे। लेकिन