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________________ मजिस्ट्रेट - तुम्हें केसर कहां से मिलती थी? सिद्ध- मरुदेवी माता के छोटे हाथी पर रखे हए प्यालों से। मजिस्ट्रेट - केसर की प्याली तुम किस तरह से ले जाते थे? सिद्ध - अपने पंजो से पकडकर । मजिस्ट्रेट - अपनी चोंच से क्यों नहीं ? सिद्ध- उससे तो केसर अपवित्र हो जाती। मजिस्ट्रेट - अब मैं पूछता हूं सो बताओ, उससे तुम्हारे सच-झूठ की जांज हो जायेगी। बताओ! वहां (सिद्धाचलजी में) कितने मंदिर हैं? वे किस प्रकार से घिरे हुए हैं और मंदिरों में पहुंचने के कितने दरवाजे हैं? सिद्ध- बहुत मन्दिर हैं। वे एक चार-दीवारी से घिरे हुए हैं, उसके तीन दरवाजे हैं। मजिस्ट्रेट - अच्छा, तुम किस दरवाजे से जाते थे? सिद्ध- पीछे के दरवाजे से। मजिस्ट्रेट की प्रसन्नता का ठिकाना नहीं था। वह बालक को गोद में उठाकर मेरे कमरे में आया और अपने परिवार में इस प्रकार का अमूल्य-रत्न प्राप्त करने के लिये मुझे हार्दिक बधाई दी। स्थानकवासी साध्वी और बालक: कुछ स्थानकवासी साध्वियां बालक से मिलने आई। उनमें से एक ने बालक की जांच की। साध्वी - तुम कहते हो कि तुम आदीश्वर भगवान की पूजा करते थे। तुम यह पूजा किससे करते थे? सिद्ध - मैं केसर और फूलों से पूजा करता था। साध्वी - तुम्हें ये कैसे मिलते थे? सिद्ध - (केसर की उपरोक्त कथा दोहराने के बाद) - सिद्धवड के पास वाले बगीचे से मैं फूल लाता था। साध्वी - क्या केसर और फूलों से मूर्ति की पूजा करना पाप नहीं था? सिद्ध - अगर पाप होता तो मैं तोते की योनि में से मानव की योनि में कैसे जन्म पा सकता था? इस जवाब को सुनकर वह साध्वी एकदम चुप गो गई। सभी साध्वियां बालक सराहना करती हुई वहां से चली गई। चमेली के फूल की पहचान : बिमारी से मुक्त होने के बाद विशेष पूजा के लिए पालीताना से मैंने गुलाब और चमेली के फूल मंगवाये थे। पार्सल खोलने पर बालक ने चमेली का एक फूल उठा लिया और बोला - "मैं आदीश्वर भगवान की ऐसे फूलों से पूजा करता था।" सिद्धाचल की पहचान : सन् १९१२ के जनवरी मास में रात की गाडी से वढ़वाण से हम पालीताना के लिए रवाना हुए। प्रात:काल सोनगढ़ पहुंचे। चारों ओर की पहाड़ियों को देखते ही बालक ने उत्साह से कहा कि - "अब हम उस पवित्र पहाड के आसपास हैं।" सीहोर स्टेशन पर पालीताना के लिए गाडी बदलने के समय बालक प्लेटफोर्म पर खड़ा हो गया और उस पवित्र पर्वत की दिशा में मुडकर अत्यन्त आनन्द के साथ उसने वंदना की। फिर मेरी तरफ मुडकर वह अत्यन्त आनन्दपूर्ण मन से बोला - "देखिये, देखिये «««««««««««««««««««««««««««««««««««««««« D
SR No.009238
Book TitlePunarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherMission Jainatva Jagaran
Publication Year2015
Total Pages28
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size86 KB
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