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छोटापन और बड़ापन
है और यह लाइन उसके एक बहुत छोटेसे हिस्से में भाई है, इसे 'छोटी' कह दिया था ।
अध्यापक - फिर इसमें तुम्हारी भूल क्या हुई ? यह तो ठीक ही है- यह लाइन बोर्डसे छोटी हे, इतना ही क्यों ? यह तो टेबिल से भी छोटी है, कुर्सीसे भी छोटी है, इस कमरके किवाड़ से भी छोटी है, दीवारसे भी छोटी है, और तुम्हारी मरी लम्बाईसे भी छोटी है ।
विद्यार्थी - इस तरह तो मेरे कहनेमें भूल नहीं थी भूल
मान लेना ही भूल थी । अब अध्यापक ने उस मिटाई हुई एक इंची लाइनको फिरसे नीचे बना दिया और सवाल किया कि
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'तीनों लाइनोंकी इस स्थितिमें तुम बीचकी उसी नम्बर १ वाली लाइनको छोटी कहोगे या बड़ी ?'
विद्यार्थी - मैं तो अब यूँ कहूँगा कि यह ऊपरवाली लाइन नं० ३ से छोटी और नीचेवाली लाइन नं० २ से बड़ी है।
अध्यापक- अर्थात् इसमें छोटापन और बड़ापन दोनों हैं और दोनों गुण एक साथ हैं ?
विद्यार्थी - हाँ, इसमें दोनों गुण एक साथ हैं ।
अध्यापक - एक ही चीज्रको छोटी और बड़ी कहने में क्या तुम्हें कुछ विरोध मालूम नहीं होता ? जो वस्तु छोटी है वह बड़ी नहीं कहलाती और जो बड़ी है वह छोटी नहीं कही जाती । एक ही वस्तुको 'छोटी' कहकर फिर यह कहना कि 'छोटी नहीं - बड़ी' है, यह कथन तो लोक व्यवहारमें विरुद्ध जान पड़ेगा। लोकव्यवहार में जिस प्रकार 'हाँ' कहकर 'ना' कहना