________________
(घ)
अनेकान्तका रहस्य बड़ा गूढ गंभीर और जटिल है। स्वामी समन्तभद्र जैसे विज्ञ महामना एवं समुदार महर्षियोंने अनेक दार्शनिक तत्त्वों और सिद्धान्तोंका विवेचन करते हुए उस रहस्यका भने प्रकार उद्घाटन अपने देवागमादि महान संस्कृत प्रन्थोंमें किया है, जो सर्वसाधारणकी पहुंचके परे तथा बहुत कुछ दुर्बोध हैं । उन्हीं ग्रन्थोंके अध्ययनके फलस्वरूप बहुत अर्सेसे मेरा विचार था कि अनेकान्त-जैसे गंभीर विषयको ऐसे मनोरंजक ढंगसे सरल शब्दोंमें समझाया जाय जिससे बच्चे तक भी उसके मर्मको आसानीसे समझ सकें, वह कठिन दुर्बोध एवं नीरस विषय न रहकर सुगम सुखबोध तथा रसीला विषय बन जाय-बातकी बातमें समझा जा सके और जनसाधारण सहजमें ही उसका रसास्वादन करते हुए उसे हृदयङ्गम करने, अपनाने और उसके प्राधारपर तत्त्वज्ञानमें प्रगति करने, प्राप्तज्ञानमें समीचीनता लाने, विरोधको मिटाने तथा लोकव्यवहार में सुधार करनेके साथ साथ अनेकान्तको जीवनका प्रधान अङ्ग बनाकर सुख-शान्तिका अनुभव करने में समर्थ हो सकें। उसी विचारके फलस्वरूप यह 'अनेकान्त रस-लहरी' नामकी प्रथम पुस्तक लिखी गई है, जो चार पाठोंमें विभक्त है । प्रथम दो पाठोंमें अनेकान्तका सूत्र निर्दिष्ट है-उसके रहस्यको खोलनेकी कुजी अथवा सत्यको परखनेकी कसौटी संनिहित है। शेष दो पाठोंमें उसके व्यवहारशास्त्रका कुछ दिग्दर्शन कराया गया है और उसके द्वारा अनेकान्त-तत्व-विषयक समझको विस्तृत, परिपुष्ट तथा विकासोन्मुख किया गया है । आशा है इससे लोकका हित सधेगा और विद्यार्थीगण विशेष उपकृत होंगे, जिन्हें लक्ष्यमें लेकर ही अन्तमें चारों पाठोंकी उपयोगी प्रश्नावली संयोजित की गई है।
देहली, २८ जनवरी १९५० जुगलकिशोर मुख्तार