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बड़ा और छोटा दानी भ्रष्ट और अपने अधिकारका दुरुपयोग करनेके लिये उतारू हो जाता है वह दानका पात्र भी नहीं है। इस तरह पारमार्थिक दृष्टिसे सेठ रामानन्दका दान कोई दान नहीं है। और न मोकमें ही ऐसे दानको दान कहा जाता है । यदि द्रव्यको अपनेसे पृथक करके किसीको दे देने मात्रके कारण ही उसे दान कहा जाय तो वह सबसे निकृष्ट दान है, उसका उद्देश्य बुरा एवं लोकहितमें बाधक होनेसे वह भविष्यमें घोर दुःखों तथा आपदाओंके रूपमें फलेगा । और इस लिये पाँच-पाँच लाखके उक्त चारों दानियोंमेंसे सेठ रामानन्दको सबसे अधिक निकष्ट, नीचे दर्जेका तथा अधम दानी समझना चाहिये।
अध्यापक-शाबास ! मालूम होता है अब तुम बड़े और छोटेके तत्स्वको बहुत कुछ समझ गये हो । हाँ इतना और बतलाओ कि जिन चार दानियोंको तुमने पाँच-पाँच लाखके दानियोंसे बड़े दानी बतलाया है वे क्या दस-दस हजारकी समान रकमके दानसे परस्परमें समान दानी हैं, समान-फलके भोक्ता होंगे और उनमें कोई परस्परमें बड़ा-छोटा दानो नहीं हैं ?
विद्यार्थी उत्तरकी खोजमें मन-ही मन कुछ सोचने लगा, इतने में अध्यापकजी बोल उठे-'इसमें अधिक सोचने की बात नहीं, इतना तो स्पष्ट हो है कि जब अधिक द्रव्यके दानी भी अल्प द्रव्यके दानीसे छोटे होजाते हैं और दानद्रव्यकी संख्यापर ही दान तथा दानीका बड़ा-छोटापन निर्भर नहीं है तब समान द्रव्यके दानी परस्परमें समान और एक ही दर्जेके होंगे ऐसा कोई नियम नहीं हो सकता-वे समान भी हो सकते हैं और असमान भी। इस तरह उनमें भी बड़े-छोटेका भेद संभव है और वह भेद तभी स्पष्ट हो सकता है जब कि सारी परिस्थिति सामने