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________________ ३० अनेकान्त-रस-तहरी आपका यह दस हजारका दानी बड़ा दानी है। इस तरह दस हजारका दानी एककी अपेक्षासे बड़ा दानी और दूसरेकी अपे. तासे छोटा दानी है, तदनुसार पाँच लाखका दानी भी एककी अपेक्षासे बड़ा और दूसरेकी अपेक्षासे छोटा दानी है । ___ अध्यापक-हमारा मतलब यह नहीं जैसा कि तुम समझ गये हो, दूसरोंकी अपेक्षाका यहाँ कोई प्रयोजन नहीं। हमारा पूछनेका अभिप्राय सिर्फ इतना ही है कि क्या किसी तरह इन दोनों दानियोंमेंसे पाँच लाखका दानी दस हजारके दानीसे छोटा और दस हजारका दानी पाँच लाखके दानीसे बड़ा दानी हो सकता है ? और तुम उसे स्पष्ट करके बतला सकते हो ? विद्यार्थी-यह कैसे होसकता है ? यह तो उसी तरह असंभव है जिस तरह पत्थरकी शिला अथवा लोहेका पानीपर तैरना। __ अध्यापक-पत्थरकी शिलाको लकड़ीके स्लोपर या मोटे तख्तेपर फिट करके अगाध जल में तिराया जा सकता है और लोहेकी लुटिया, नौका अथवा कनस्टर बनाकर उसे भी तिराया जा सकता है। जब युक्तिसे पत्थर और लोहा भी पानीपर तैर सकते हैं और इसलिये उनका पानीपर तैरना सर्वथा असंभव नहीं कहा जा सकता, तब क्या तुम युक्तिसे दस हजारके दानीको पाँचलाखके दानीसे बड़ा सिद्ध नहीं कर सकते ? यह सुनकर विद्यार्थी कुछ गहरी सोच में पड़ गया और उससे शीघ्र कुछ उत्तर न बन सका । इसपर अध्यापक महो. दयने दूसरे विद्यार्थियोंसे पूछा-'क्या तुममेंसे कोई ऐसा कर सकता है ?' ने भी सोचते-से रह गये । और उनसे भी शीघ्र कुछ उत्तर न बन पड़ा । तब अध्यापकजी कुछ कड़ककर बोले
SR No.009236
Book TitleAnekant Ras Lahari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year1950
Total Pages49
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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