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अनेकान्त-रस-लहरी से फलित होनेवाली तीन बातोंमेंसे पहली बात) अभी और विचारणीय है, वह ठीक नहीं है।
इस पर विद्यार्थी (जिसे पहले ही अपनी सदोष परिभाषापर खेद हो रहा था) नत मस्तक होकर बोला-'आपने जो कुछ कहा है वह सब ठोक है । आपके इस विवेचन, विकल्पोद्भावन
और स्पष्टीकरणसे हम लोगोंका बहुतसा अज्ञान दूर हुआ है। हमने जो छोटे-बड़ेके तत्वको खूब अच्छी तरह समझ लेनेकी बात कही थी वह हमारी भूल थी। जान पड़ता है अभी इस विषयमें हमें बहुत कुछ सीखना-समझना बाकी है । लाइनोंके द्वारा आपने जो कुछ समझाया था वह इस विषयका 'सूत्र' था, अब आप उस सूत्रका व्यवहारशास्त्र हमारे सामने रख रहे हैं। इससे सूत्रके समझनेमें जो त्रुटि रही हुई है वह दूर होगी, कितनी ही उलझने सुलझेगी और चिरकाल की भूलें मिटेंगी। इस कृपा एवं ज्ञान-दानके लिये हम सब आपके बहुत ही ऋणी और कृतज्ञ हैं।'
मोहनके इस कथनका दूसरे विद्यार्थियोंने भी खड़े होकर समर्थन किया।
घंटेको बजे कई मिनट हो गये थे, दूसरे अध्यापकमहोदय भी कक्षामें आगये थे, इससे अध्यापक वीरभद्रजी शीघ्र ही दूसरी कक्षामें जानेके लिये बाध्य हुए ।