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अनेकान्त-रस लहरी कर वास्तवमें द्रवीभूत हुआ है, उन्होंने भो मानवीय कर्तव्य समझ कर स्वेच्छासे बिना किसी लौकिक लाभको लक्ष्यमें रक्खे दो लाखका दान दिया है और उससे अपनी एक भोजनशाला खुलवाई है। साथ ही, भोजनशालाकी ऐसी विधि व्यवस्था की है, जिससे वे भोजनपात्र गरीब भुखमरे ही भोजन पा सकें जिनको लक्ष्य करके भोजनशाला खोली गई है । उसने भोजनशालाका प्रबन्ध अपने दो योग्य पुत्रोंके सुपुर्द करदिया है, जिनकी सुव्यवस्थासे कोई मण्डा मुसण्डा अथवा अपात्र व्यक्ति भोजनशालाके अहातेके अन्दर घुसने भी नहीं पाता, जिसके जो योग्य है वही सात्विक भोजन उसे दिया जाता है और उन दीन-अनाथों तथा विधवा-अपाहजोको उनके घरपर भी भोजन पहुँचाया जाता है जो लज्जाके मारे भोजनशालाके द्वार तक नहीं पा सकते और इसलिये जिन्हें भोजनके अभाव में घर पर ही पड़े पड़े मर जाना मंजूर है । अब बतलाओ इन दोनों सेठोंमें कौन बड़ा दानी है ?-वही चौथे नम्बरवाला सेठ क्या बड़ा दानी है जिसे तुमने अभी बहुतोंकी तुलनामें बड़ा बतलाया है ? अथवा पांचवें नम्बर का यह सेठ धनीराम बड़ा दानी है ? कारण सहित प्रकट करो।
विद्यार्थी उत्तरके लिये कुछ सोचने ही लगा था कि इतने में अध्यापकजी बोल पड़े-'इसमें तो सोचनेकी जरा भी बात नहीं है, यह स्पष्ट है कि चौथेनम्बर वाले सेठकी पोजीशन बड़ी है, उसकी माली हालत सेठ धनीरामसे बहुत बढ़ी चढ़ी है, फिर भी धनीरामने उसके बरावर ही दो लाखका दान दिया है, दीन-दुखियोंकी पुकारके मुकाबलेमें अधिक धन संचित कर रखना उसे अनुचित ऊँचा है और उसने थोड़ी सम्पत्तिमें ही सन्तोष धारण करके उसीसे अपना निवाह कर लेना इस विषम परिस्थितिमें उचित समझा है । अतः उसका दानद्रव्य समान होनेपर