SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त-रस-लहरी कि रुपयोंका दान करनेवाला ही बड़ा दानी है, दूसरी किसी चोजका दान करनेवाला बड़ा दानी नहीं। विद्यार्थी-मेरा यह मतलब नहीं कि दूसरी किसी चीजका दान करनेवाला बड़ा दानी नहीं, यदि उस दूसरी चीमकीजायदाद मकान वगैरहकी-मालियत उतने रुपयों जितनी है तो उसका दान करनेवाला भी उसी कोटिका बड़ा दानी है। अध्यापक-जिस चीजका मूल्य रुपयोंमें न आँका जा सके उसके विषयमें तुम क्या कहोगे ? विद्यार्थी-ऐसी कौन चीज है, जिसका मूल्य रुपयोंमें न आँका जा सके ? __ अध्यापक-निःस्वार्थ प्रेम, सेवा और अभयदानादि; अथवा क्रोधादि कषायोंका त्याग और दयाभावादि बहुतसी ऐसी चीजें हैं जिनका मूल्य रुपयों में नहीं आँका जा सकता । उदाहरण के लिये एक मनुष्य नदीमें डूब रहा है, यह देख कर तटपर खड़ा हुआ एक नौजवान जिसका पहलेसे उस डूबने वालेके साथ कोई सम्बन्ध तथा परिचय नहीं है, उसके दुःखसे व्याकुल हो उठता है, दयाका स्रोत उसके हृदयमें फूट पड़ता है, मानवीय कर्तव्य उसे आ धर दबाता है और वह अपने प्राणोंकी कोई पर्वाह न करता हुआ-जान जोखोंमें डालकर भी एकदम चढ़ी हुई नदीमें कूद पड़ता है और उस डूबनेवाले मनुष्यका उद्धार करके उसे तटपर ले आता है । उसके इस दयाभाव-परिणत प्रात्मत्याग और उसकी इस सेवाका कोई मूल्य नहीं और यह अमूल्यता उस समय और भी बढ़ जाती है जब यह मालूम होता है कि वह उद्धार पाया हुआ मनुष्य एक राजाका इकलौता पुत्र है और उद्धार करने वाले साधारण ग़रीब आदमीने बदलेमें कृतज्ञता रूप
SR No.009236
Book TitleAnekant Ras Lahari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year1950
Total Pages49
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy