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अनेकान्त-रस-लहरो
बड़ी है अर्थात स्वयं तीन-इंची होनेसे पांच-इंची लाइनकी अपेक्षा छोटी और एक-इंची लाइनकी अपेक्षा बड़ी है। और यह छोटापन तथा बडापन दोनों गुण इसमें एक साथ प्रत्यक्ष होनेसे इनमें परस्पर विरोध तथा असंगति-जैसी भी कोई बात नहीं है ।
अध्यापक-अगर कोई विद्यार्थी इस बीचकी लाइनको एकवार ऊपर की लाइनसे छोटी और दूसरी वार ऊपरकी लाइनसे ही बड़ी बतलावे, और इस तरह इसमें छोटापन तथा बड़ापन दोनोंका विधान करे तब भी विरोधकी क्या कोई बात नहीं है ?
विद्यार्थी-इसमें जरूर विरोध आएगा । एक तो उसके कथनमें पूर्वापर-विरोध आएगा; क्योंकि पहले उसने जिसको जिससे छोटी कहा था उसीको फिर उससे बड़ो बतलाने लगा। दूसरे, उसका कथन प्रत्यक्षके भी विरुद्ध ठहरेगा; क्योंकि उपरकी लाइन नीचेकी लाइनसे साक्षात् बड़ी नजर आती है, उसे छोटी बतलाना दृष्ट-विरुद्ध है ।
अध्यापक-यह क्या बात है कि तुम्हारे बड़ी-छोटो बतलानेमें तो विरोध नहीं और दूसरेके बड़ी-छोटी बतलानेमें विरोध श्राता है ?
विद्यार्थी-मैंने एक अपेक्षासे छोटी और दूसरी अपक्षासे बड़ी बतलाया है। इस तरह अपेक्षाभेदको लेकर भिन्न कथन करनेमें विरोधके लिये कोई गुंजाइश नहीं रहती। दूसरा जिसे एक अपेक्षासे छोटी बतलाता है उसीकी अपेक्षासे उसे बड़ी बतलाता है, इस लिये अपेक्षाभेद न होनेके कारण उसका भिन्न कथन विरोधसे हित नहीं हो सकता-वह स्पष्टतया विरोधदोषसे दूषित है।
अध्यापक-तुम ठीक समझ गये। अच्छा अब इतना और