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धवला उद्धरण
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निक्षेप करने का विधान
जत्थ जहा जाणेज्जो अवरिमिदं तत्थ णिक्खिवे णियमा । जत्थ बहुवं ण जाणदि चउट्ठवो तत्थ णिक्खेवो ||60|| जहाँ पदार्थों के विषय में यथावस्थित जाने वहाँ पर नियम से अपरिमित निक्षेप करना चाहिये । पर जहाँ पर बहुत न जाने वहाँ पर चार निक्षेप अवश्य करना चाहिये ||60||
प्रमाणादि की उपादेयता
प्रमाणनयनिक्षेपैर्यो ऽर्थो नाभिसमीक्ष्यते । युक्तं चायुक्तवद्भाति तस्यायुक्तं च युक्तवत् ।।61।। प्रमाण, नय और निक्षेपों के द्वारा जिसका सूक्ष्म विचार नहीं किया जाता है, वह युक्त होते हुए भी कभी अयुक्तसा प्रतीत होता है और अयुक्त होते हुए भी कभी युक्तसा प्रतीत होता है ||61||
प्रक्षेप राशियाँ
धम्माधम्मा लोगो पत्तेयसरीर- एगजीवगपदे सा । बादरपदिट्ठिदा वि य छप्पदेऽसंखपक्खेवा । 162 ।। धर्म द्रव्य, अधर्म द्रव्य, लोक, अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति, एक
जीव के प्रदेश और बादर प्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति इसप्रकार छह स्थानों में विभक्त ये असंख्यात रूप प्रक्षेप राशियाँ हैं । 162 ।।
सुहुमो य हवदि कालो तत्तो सुहुमं खु जायदे खेत्तं । अंगुल-असंखभागे हवंति कप्पा असंखेज्जा ।। 63 । । इदि ।
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का सूक्ष्म होता है और क्षेत्र उससे भी सूक्ष्म होता है, क्योंकि एक अंगुल के असंख्यातवें भाग में असंख्यात कल्पकाल आ जाते हैं। अर्थात् एक अंगुल के असंख्यातवें भाग के जितने प्रदेश होते हैं, असंख्यात