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धवला पुस्तक 3
95 कल्पकाल के उतने समय होते हैं।।63।।
सुहुमं तु हवदि खेत्तं तत्तो सुहुमं खु जायदे दव्वं। दव्वंगुलम्हि एक्के हवंति खत्तं गुलाणंता।।64।।
क्षेत्र सूक्ष्म होता है और उससे भी सूक्ष्म द्रव्य होता है, क्योंकि एक द्रव्यांगुल में (गणना की अपेक्षा) अनन्त क्षेत्रांगुल पाये जाते हैं।।64।।
उपप्रमाण के प्रकार पल्लो सायर-सूई पदरो य घणांगुलो य जगसेढी। लोगपदरो य लोगो अट्ठ दु माणा मुणेयव्वा।।65।।
पल्य, सागर, सूच्यंगुल, प्रतरांगुल, घनांगुल, जगत्श्रेणी, लोकप्रत्तर और लोक इसप्रकार ये आठ उपप्रमाण जानना चाहिये।।65।। वारस दस अट्ठेव य मूला छत्तिग दुगं च णिरएसु। एक्कारस णव सत्त य पण य चउक्कं च देवेसु।।66।।
नरक में द्वितीयादि पृथिवी संबन्धी द्रव्य लाने के लिये जगत् श्रेणी का बारहवाँ, दशवाँ, आठवाँ, छठा, तीसरा और दूसरा वर्गमूल क्रम से अवहार काल होता है तथा देवों में सानत्कुमार आदि पाँच कल्प युगलों का प्रमाण लाने के लिये जगत् श्रेणी का ग्यारहवाँ, नौवां, सातवां, पाँचवां और चौथा वर्गमूल क्रम से अवहार काल होता है।।66।।
वारस दस अट्ठेव य मूला छत्तिय दुगं च णिरएसु। एक्कारस णव सत्त य पण य चउक्कं च देवेसु।।67।।
नारकियों में द्वितीयादि पृथिवियों का द्रव्य लाने के लिये जगत् श्रेणी का बारहवां, दशवां, आठवां, छठा, तीसरा और दूसरा वर्गमूल अवहार काल है और देवों में सानत्कुमार आदि पाँच कल्प युगलों का द्रव्य लाने के लिये जगत् श्रेणी का ग्यारहवाँ, नौवां, सातवां, पांचवां और चौथा वर्गमूल अवहार काल है।।67।।