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धवला पुस्तक 3
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प्रमाण, नय एवं निक्षेप
ज्ञानं प्रमाणमित्याहुरुपायो न्यास उच्यते। नयो ज्ञातुरभिप्रायो युक्तितो ऽर्थ परिग्रहः । ।15।। विद्वान् पुरुष सम्यग्ज्ञान को प्रमाण कहते हैं, नामादि के द्वारा वस्तु में भेद करने के उपाय को न्यास या निक्षेप कहते हैं और ज्ञाता के अभिप्राय को नय कहते हैं। इसप्रकार युक्ति से अर्थात् प्रमाण, नय और निक्षेप के द्वारा पदार्थ का ग्रहण अथवा निर्णय करना चाहिये ||15||
सिद्धा णिगोदजीवा वणप्फदी कालो य पोग्गला चेव । सव्वमलो गागासं छप्पेदे णंतपक्खो वा ।।16।। तीन बार वर्गित संवर्गित राशि में सिद्ध, निगोद जीव, वनस्पतिकायिक, पुद्गल, काल के समय और अलोकाकाश ये छहों अनन्त राशियाँ मिला देना चाहिये ।।16।।
सुहुमो य हवदि कालो तत्तो य सुहुमदरं हवदि खेत्तं । अंगुल - असंखभागे हवंति कप्पा असंखेज्जा ।।17।। काल प्रमाण सूक्ष्म है और क्षेत्र प्रमाण उससे भी सूक्ष्म है, क्योंकि अंगुल के असंख्यातवें भाग में असंख्यात कल्प होते हैं।।17।।
सुहुमं तु हवदि खेत्तं तत्तो य सुहुमदरं हवदि दव्वं । खेत्तंगुला अनंता एगे दव्वंगुले होंति ।। 18 ।।
क्षेत्र सूक्ष्म होता है और उससे भी सूक्ष्मतर द्रव्य होता है, क्योंकि एक द्रव्यांगुल में अनन्त क्षेत्रांगुल होते हैं ||18||
धम्माधम्मागासा तिण्णि वि तुल्लाणि होति थोवाणि । वड्ढीसु जीवपोग्गलकालागासा अनंतगुणा ।।19।। धर्म द्रव्य, अधर्म द्रव्य और लोकाकाश ये तीनों ही समान होते हुए स्तोक हैं तथा जीव द्रव्य, पुद्गल द्रव्य, काल के समय और आकाश के