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धवला उद्धरण
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पम्मा पउमसवण्णा सक्का पण कासकसमसंकासा। किण्हादि-दव्वलेस्सा-वण्णविसेसो मुणेयव्वो।।239।।
कृष्ण लेश्या भौरे के समान अत्यन्त काले वर्ण की होती है, नील लेश्या नील की गोली के समान नील वर्ण की होती है। कापोत लेश्या कपोत वर्ण वाली होती है, तेजोलेश्या सोने के समान वर्ण वाली होती है, पद्म लेश्या पद्म के समान वर्ण वाली होती है और शुक्ल लेश्या कास के फूल के समान श्वेत वर्ण की होती है। इस प्रकार कृष्णादि द्रव्य लेश्याओं के वर्ण विशेष जानना चाहिए।।238-239।।
भाव लेश्या णिम्मूलखांधसाहु वसाहं उच्चित्तु वाउपडिदाई। अब्भतरलेस्साणं भिंदइ एदाई वयणाई।।240।।
जड़-मूल से वृक्ष को काटो, स्कन्ध से काटो, शाखाओं से काटो, उपशाखाओं से काटो, फलों को तोड़कर खाओ और वायु से पतित फलों को खाओ. इस प्रकार के ये वचन अभ्यन्तर अर्थात भाव लेश्याओं के भेद को प्रकट करते हैं।।240।।
शुभ लेश्यायें तेऊ तेऊ तह तेऊ पम्मा पम्मा य पम्म-सुक्का य। सुक्का य परमसुक्का लेस्ससमासो मुणेयव्वो।।241।। तिण्हं दोण्हं दोण्हं छण्हं दोण्हं च तेरसण्हं च। एत्तो य चोइसण्हं लेस्साभेदो मुणेयव्वो।।242।।
तीन के तेजो लेश्या का जघन्य अंश, दो के तेजो लेश्या का मध्यम अंश. दो के तेजो लेश्या का उत्कष्ट एवं पदम लेश्या का जघन्य अंश. छह के पदम लेश्या का मध्यम अंश.दो के पदम लेश्या का उत्कष्ट एवं शुक्ल लेश्या का जघन्य अंश, तेरह के शुक्ल लेश्या का मध्यम अंश