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तथा चौदह के परम शुक्ल लेश्या होती है। इस प्रकार तीनों शुभ श्याओं का भेद जानना चाहिए। 241-242।।
लेश्या का लक्षण एवं भेद
लेस्सा य दव्वभावं कम्मं णोकम्ममिस्सयं दव्वं । जीवस्स भावलेस्सा परिणामो अप्पणो जो सो।। 243॥
लेश्या दो प्रकार की है, द्रव्य लेश्या और भाव लेश्या । नोकर्म वर्गणाओं से मिश्रित कर्म वर्गणाओं को द्रव्य लेश्या कहते हैं तथा जीव का कषाय और योग के निमित्त से होने वाला जो आत्मिक परिणाम है, वह भाव लेश्या कहलाती है।।243।।
मणपज्जवपरिहारा उवसमसम्मत्त दोण्णि आहारा । एदेसु एक्कपयदे णत्थि त्ति य सेसयं जाणे ।।244।।
मन:पर्यय ज्ञान, परिहारविशुद्धि संयम, प्रथमोपशम सम्यक्त्व, आहारक काय योग और आहारक मिश्र काय योग इनमें से किसी एक के प्रकृत होने पर शेष के आलाप नहीं होते, ऐसा जानना चाहिए।।244।।