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धवला पुस्तक 2
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दश प्राण के नाम पंचेविदिय-पाणा मण-वचि-कारण तिण्णि बलपाणा।
आणावाणप्पाणा आउगपाणेण होति दस पाणा।।236।। पाँचों ही इन्द्रियां, मनोबल, वचनबल और कायबल ये तीन बल, श्वासोच्छ्वास और आयु ये दश प्राण हैं।।236।।
पर्याप्तक एवं अपर्याप्तक में प्राण दस सण्णीणं पाणा सेसे गूणतिमस्स वे ऊणा। पज्जत्तेसिदरेसु य सत्त दुगे से सगे गूणा।।236।।
संज्ञी जीवों के दश प्राण होते हैं। शेष जीवों के एक-एक प्राण कम करना चाहिये, किन्तु अन्तिम अर्थात् एकेन्द्रिय जीवों के दो प्राण कम होते हैं। यह क्रम पर्याप्तकों का है, किन्तु अपर्याप्तक जीवों में संज्ञी और असंज्ञी पंचेन्द्रियों के सात-सात प्राण होते हैं तथा शेष जीवों के उत्तरोत्तर एक-एक कम प्राण होते हैं।।236॥
नरकों में लेश्या काऊ काऊ तह काऊ णीला य णीलकिण्हा य। किण्हा य परमकिण्हा लेस्सा पढमादिपुढवीण।।237।।
कापोत, कापोत, कापोत और नील, नील, नील और कृष्ण, कृष्ण तथा परम कृष्ण लेश्या प्रथमादि पृथिवियों में क्रमशः जानना चाहिये।।237।।
लेश्याओं का वर्ण किण्हा भमरसवण्णा णीला पुण णीलगुलियसंकासा। काऊ कओदवण्णा तेऊ तवणिज्जवण्णा य।।238।।