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धवला पुस्तक 1
49 ओस, बर्फ, कुहरा, स्थूल बिन्दुरूप जल, सूक्ष्म बिन्दुरूप जल, चद्रकान्तमणि से उत्पन्न हुआ शुद्ध जल, झरना आदि से उत्पन्न हुआ जल, समुद्र, तालाब और घनवात आदि से उत्पन्न हुआ घनोदक अथवा हरदणु अर्थात् तालाब और समुद्र आदि से उत्पन्न हुआ जल तथा घनोदक अर्थात् मेघ आदि से उत्पन्न हुआ जल ये सब जिनशासन में जलकायिक जीव कहे गये हैं।।150।।
अग्निकायिक जीव इंगाल-जाल-अच्ची मुम्मुर-सुद्धागणी तहा अगणी। अणणे वि एवमाई ते उक्काया समुद्दिट्ठा।।151।।
अंगार, ज्वाला, अचिं अर्थात् अग्निकिरण, मर्मुर अर्थात् भूसा अथवा कण्डा की अग्नि, शुद्धाग्नि अर्थात् बिजली और सूर्यकान्त आदि से उत्पन्न हुई अग्नि और धूमादिसहित सामान्य अग्नि, ये सब अग्निकायिक जीव कहे गये हैं।।151।।
वायुकायिक जीव वाउब्भामो उक्कलि-मंडलि-गुंजा महा घणो य तणू। एदे दु वाउकाया जीवा जिण-इंद-णिहिट्ठा।।152।।
सामान्य वायु, उद्घाम अर्थात् घूमता हुआ ऊपर जाने वाले वायु (चक्रवात), उत्कलि अर्थात् नीचे की ओर बहने वाला या जल की तरंगों के साथ तरंगित होने वाला वायु, मण्डलि अर्थात् पृथिवी से स्पर्श करके घूमता हुआ वायु, गुंजा अर्थात् गुंजायमान वायु, महावात अर्थात् वृक्षादि के भंग से उत्पन्न होने वाला वायु, घनवात और तनुवात ये सब वायुकायिक जीव जिनेन्द्र भगवान् ने कहे हैं।।152।।