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धवला उद्धरण
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प्रत्येक जीव एवं उसके भेद
मूलग्ग - पोर-वीया कंदा तह खंघ - वीय- वीयरूहा। सम्मुच्छिमा य भणिया पत्तेयाणंतकाया य ।। 153।।
मूलबीज, अग्रबीज, पर्वबीज, कन्दबीज, स्कन्धबीज, बीजरुह और संमूछिम, ये सब वनस्पतियां सप्रतिष्ठित प्रत्येक और अप्रतिष्ठित प्रत्ये के भेद से दो प्रकार की कही गई हैं । । 153 1
त्रसकायिक जीव
बिहि तीहि चउहि पंचहि सहिया जे इदिएहि लोयम्मि | ते तसकाया जीवा णेया बीरोवएसे ण ।।154।। लोक में जो जीव दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रिय और पाँच इन्द्रियों से युक्त हैं उन्हें वीर भगवान् के उपदेश से त्रसकायिक जीव जानना चाहिये।।154।।
अयोगीजिन का स्वरूप
जेसिं ण सन्ति जोगा सुहासुहा पुण्ण - पाव संजणया । ते होंति अजोगिजिणा अणोवमाणंत - बल - कलिया ।।155।। जिन जीवों के पुण्य और पाप के उत्पादक शुभ और अशुभ योग नहीं पाये जाते हैं, वे अनुपम और अनन्त - बल सहित अयोगीजिन कहलाते हैं। 1551
सत्य एवं मृषा मनोयोग
सब्भावो सच्चमणो जो जोगो तेण सच्चमणजोगो । तव्विवरीदो मोसा जाणुभयं सच्चमोसं ति ।। 156।।
सद्भाव अर्थात् सत्यार्थ को विषय करने वाले मन को सत्यमन कहते हैं और उससे जो योग होता है उसे सत्यमनोयोग कहते हैं। इससे विपरीत