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धवला पुस्तक 1
मिथ्यादृष्टि जीव सुत्तो त सम्म दरिसिज्जतं जदा ण सद्दहदि। सो चेय हवदि मिच्छाइट्ठी हु तदो पहुडि जीवो।।143।।
सूत्र से आचार्यादि द्वारा भले प्रकार समझाये जाने पर भी यदि वह जीव विपरीत अर्थ को छोड़कर समीचीन अर्थ का श्रद्धान नहीं करता है, तो उसी समय से वह जीव मिथ्यादृष्टि हो जाता है।।143।।
ध्यान से मुक्ति जह कंचणमिग्ग-गयं मुंचइ किट्टेण कालियाए य। तह काय-बंध-मुक्का अकाया ज्झाण-जोएण।।144।। जिस प्रकार अग्नि को प्राप्त हुआ सोना, कीट और कालिमारूप बाह्य और अभ्यन्तर दोनों प्रकार के मल से रहित हो जाता है, उसी प्रकार ध्यान के द्वारा यह जीव काय और कर्मरूप बन्ध से मुक्त होकर कायरहित हो जाता है।।144।।
साधारण जीवों का लक्षण साहारणमाहारो साहारणमाणपाण-गहणं च। साहारण-जीवाणं साहारण लक्खणं भणिय।।145।।
साधारण जीवों का साधारण ही आहार होता है और साधारण ही श्वासोच्छ्वास का ग्रहण होता है। इस प्रकार परमागम में साधारण जीवों का साधारण लक्षण कहा है।।145।।
साधारण जीवों का जन्म-मरण जत्थेक्कु मरइ जवो तत्थ दु मरणं हवे अणंताणं। वक्कमदि जत्थ एक्को वक्कमणं तत्थ णताण।।146।। साधारण जीवों में जहाँ पर एक जीव मरण करता है वहाँ पर अनन्त