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धवला पुस्तक 13
233 एकोत्तरपदव दो रूपोनस्त्ववहतश्च रूपाये। प्रचयहतः प्रभवयुतो गच्छोद्धान्योन्यसंगुणितः।।17।।
वृद्धिंगत एकोत्तर पद को एक आदि से भाजित करके प्रचय से गुणित करे और प्रभव को जोड़ दे। पुनः गच्छ प्रमाण स्थानों को परस्पर गुणित करे। ऐसा करने से इच्छित संयोगी भंग प्राप्त होते हैं (?)।।17।। इस सूत्र द्वारा इच्छित संयोगी भंग ले आने चाहिये। सोलससदाचोत्तीसं कोडी तेसीदि चेव लक्खाई। सत्तसहस्सट्ठसदा अट्ठासीदा य पदवण्णा।।18।।
सोलह सौ चौतीस करोड़ तिरासी लाख सात हजार आठ सौ अठासी (16348307888) इतने मध्यम पद के वर्ण होते है।।18।।
पद के प्रकार विविहं पदमुद्दिट्ठ पमाणपदमत्थमज्झिमपदं च। मज्झिमपदेण वुत्ता पुव्वंगाणं पदविभागा।।19।।
पद तीन प्रकार का कहा गया है - प्रमाण पद, अर्थ पद और मध्यम पद। इनमें से मध्यम पद के द्वारा पूर्व और अंगों का पद विभाग कहा गया है।।19।।
श्रुतज्ञान के पद बारससदकोडीओ तेसीदि हवंति तह य लक्खाई। अट्ठावण्णसहस्सं पंचेव पदाणि सुदणाणे।।20।।
श्रुतज्ञान के एक सौ बारह करोड़ तिरासी लाख अट्ठावन हजार और पाँच (1128358005) ही पद होते हैं।।20 ।।