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धवला उद्धरण
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एयट्ठ च च य छ सत्तयं च च य सुण्ण सत्त तिय सत्तं। सुण्णं णव पण पंच य एगं छक्केक्कगो य पणगं च।।13।।
एक, आठ, चार, चार, छह, सात, चार, चार, शून्य, सात, तीन, सात, शून्य, नौ, पांच, पांच, एक, छह, एक और पांच अर्थात् 18446740737095551615।।13।।
एकोत्तरपदवृद्धो रूपाद्ये भाजितश्च पदवृद्धः। गच्छः संपातफलं समाहतः सन्निपातफलम्।।14।।
एक से लेकर एक-एक बढ़ाते हुए पदप्रमाण संख्या स्थापित करो। पुनः उनमें अन्त में स्थापित एक से लेकर पदप्रमाण बढ़ी हुई संख्या का भाग दो। इस क्रिया के करने से संख्यातफल, गच्छप्रमाण प्राप्त होता है। उस सम्पातफल को त्रेसठ बटे दो आदि से गुणा कर देने पर सन्निपातफल प्राप्त होता है।।14।।
संकलणरासिमिच्छे दोरासिं थावयाहि रूवहियं। तत्तो एगदरुद्ध एगंदरगुण हवे गणिदं।।15।।
यदि संकलन राशि का लाना अभीष्ट हो तो एक राशि वह जिसकी कि संकलन राशि अभीष्ट है तथा दूसरी राशि उससे एक अंक अधिक, इस प्रकार दो राशियों को स्थापित करें। तत्पश्चात् उनमें से किसी एक राशि के अर्ध भाग को दूसरी राशि से गुणित करने पर गुणित अर्थात् विवक्षित राशि के संकलन का प्रमाण होता है।।15।।
गच्छकदी मूलजुदा उत्तरगच्छादिएहिं संगुणिदा। छहि भजिदे जं लद्धं संकलणाए हवे कलणा।।16।।
गच्छ का वर्ग करके इसमें मूल को जोड़ दें, पुनः आदि-उत्तर सहित गच्छ से गुणित करके उसमें छह का भाग दे। इससे जो लब्ध आवे वह संकलना की कलना होती है।।16।।