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धवला पुस्तक 13
संज्ञी पञ्चेन्द्रियों के इन्द्रिय विषय क्षेत्र पासे रसे य गंधे विसओ णव जोयणा मुणेयव्वा । बारह जोयण सोदे चक्खुस्सद्धं पवक्खामि ।। 8 ।। सत्तेतालसहस्सा बे चेव सया हवंति तेवट्ठी । चक्खिंदियस्स विसओ उक्कस्सो होइ अदिरित्तो ॥ 9 ॥
संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव के स्पर्शन, रसना और घ्राण का विषय नौ योजन तथा श्रोत्र इन्द्रिय का विषय बारह योजन जानना चाहिये। चक्षु इन्द्रिय का विषय आगे कहते हैं। चक्षु इन्द्रिय का उत्कृष्ट विषय सेंतालीस हजार दो सौ त्रेसठ योजन से कुछ अधिक है।।8-9।।
अन्यथानुपपन्नत्वं यत्र तत्र त्रयेण किम् । नान्यथानुपपन्नत्वं यत्र तत्र त्रयेण किम् ।।10।।
जहाँ अन्यथानुपपत्ति है वहाँ पक्षसत्त्वादि उन तीन के होने से क्या मतलब अर्थात् कुछ भी नहीं, और जहाँ अन्यथानुपपत्ति नहीं है वहाँ उन तीन के होने से क्या प्रयोजन सिद्ध होगा अर्थात् कुछ भी नहीं।।10।
वर्ण की संख्या
तेत्तीस वंजणाई सत्तावीस हवंति सव्वसरा । चत्तारि अजोगवहा एवं चउसट्ठि वण्णाओ ।।11।। तेंतीस व्यंजन, सत्ताईस और चार अयोगवाह इस प्रकार कुल वर्ण चौंसठ होते हैं।।11।
एकमात्रो भवेधस्वो द्विमात्रो दीर्घ उच्यते । त्रिमात्रस्तु प्लुतो ज्ञेयो व्यञ्जनं त्वर्द्धमात्रकम् ।।12।।
एक मात्रा वाला ह्रस्व कहलाता है, दो मात्रा वाला दीर्घ कहलाता है, तीन मात्रा वाला प्लुत जानना चाहिये और व्यंजन अर्ध मात्रा वाला होता है।।12।।