________________
धवला उद्धरण
234
स्वाध्यायी भिक्षु की विशेषता सज्झायं कुव्वंतो पंचिंदियसंवुडो तिगुत्तो य। होदि य एयग्गमणो विणएण समाहिदो भिक्खू।।21।।
स्वाध्याय को करने वाला भिक्षु पाँचों इन्द्रियों के व्यापार से रहित और तीन गुप्तियों से सहित होकर एकाग्र मन होता हुआ विनय से संयुक्त होता है।।21॥
जह जह सुदमोगाहिदि अदिसयरसपसरमसुदपुव्वं तु। तह तह पल्हादिज्जदि णव-णवसंवेगरुद्धाए।।22।।
जिसमें अतिशय रस का प्रसार है और जो अश्रुतपूर्व है ऐसे श्रुत का वह जैसे-जैसे अवगाहन करता है वैसे-वैसे ही अतिशय नवीन धर्म श्रद्धा से संयुक्त होता हुआ परम आनन्द का अनुभव करता है।।22।।
गुप्ति की महिमा जं अण्णाणी कम खवेइ भवसयसहस्सकोडीहिं। तं णाणी तिहि गुत्तो खवेइ अंतोमुहुत्तेण।।23।।
अज्ञानी जीव जिस कर्म का लाखों करोड़ों भवों के द्वारा क्षय करता है उसका ज्ञानी जीव तीन गुप्तियों से गुप्त होकर अन्तर्मुहूर्त में क्षय कर देता है।।23।।
अवधिक्षेत्र का वर्गीकरण णेरइय-देव-तित्थयरोहिक्खोत्तस्स बाहिर एदे। जाणंति सव्वदो खलु सेसा देसेण जाणंति।।24।।
नारकी, देव और तीर्थंकर इनका जो अवधिक्षेत्र है उसके भीतर ये सर्वांग से जानते हैं और शेष जीव शरीर के एकदेश से जानते हैं।।24।।