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धवला उद्धरण
224 धर्म्यध्यान का चिन्ह आगमउवदेसाणा णिसग्गदो जं जिणप्पणीयाणं। भावाणं सहहणं धम्मज्झाणस्स तल्लिंग।।54।।
आगम, उपदेश और जिनाज्ञा के अनुसार निसर्ग से जो जिन भगवान् के द्वारा कहे गये पदार्थों का श्रद्धान होता है वह धर्म्यध्यान का लिंग है।।54॥ जिण-साहुगुणुक्कित्तण-पसंसणा-विणय-दाणसंपण्णा। सुद-सील-संजमरदा धम्मज्झाणे मुणेयव्वा।।55।।
जिन और साधु के गुणों का कीर्तन करना, प्रशंसा करना, विनय करना. दानसम्पन्नता. श्रत. शील और संयम में रत होना. ये सब बातें धर्म्यध्यान में होती हैं, ऐसा जानना चाहिये।।55।।
धर्म्यध्यान का फल होति सुहासव-संवर-णिज्जरामरसुहाई विउलाई। ज्झाणवरस्स फलाइं सुहाणुबंधीणि धम्मस्स।।56।।
उत्कृष्ट धर्म्यध्यान के शुभ आस्रव, संवर, निर्जरा और देवों का सुख, ये शुभानुबन्धी विपुल फल होते हैं।।56।।
ध्यान की महिमा जह वा घणसंघाया खणेण पवणाहया विलिज्जति। ज्याणप्पवणोवहया तह कम्मघणा विलिज्जति।।57।।
अथवा जैसे मेघपटल पवन से ताडित होकर क्षण मात्र में विलीन हो जाते हैं वैसे ही ध्यानरूपी पवन से उपहत होकर कर्म-मेघ भी विलीन हो जाते हैं।।57॥