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धवला पुस्तक 9
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स पर्याय का काल
सोहम्मे माहिदे पढमपुढवीसु होदि चदुगुणिदं । बम्हादिआणच्युद पुढवीणं अट्ठगुणं ।। 124 ।। गे वज्जेसु च बिगुणं उवरिमगे वज्जएगवज्जे सु । दोणि सहस्साणि भवे कोडिपुधत्तेण अहियाणि ।।125।। सौधर्म, माहेन्द्र और प्रथम पृथिवी में चार बार उत्पन्न होता है। ब्रह्म कल्प से आरण-अच्युत कल्पों और द्वितीयादि शेष पृथिवियों में आठ बार उत्पन्न होता है। एक उपरिम ग्रैवेयक को छोड़कर सब ग्रैवेयकों में दो बार उत्पन्न होता है। इस प्रकार त्रस पर्याय का काल पूर्वकोटिपृथक्त्व से अधिक दो हजार सागरोपम प्रमाण होता है।।124-125।।
स्त्रियों का देव पर्याय काल
सोहम्मे सत्तगुसं तिगुध्सं जसच डु युयुक्कव्वसेत्ति । सेसेसु भवे बिगुणं जाव दु हारणच्चुदो कप्पो ।।126 ।। स्त्रीवेदी सौधर्म कल्प में सात बार, ईशान से लेकर महाशुक्र कल्प तक तीन बार और आरण - अच्युत कल्प तक शेष कल्पों में दो बार उत्पन्न होता है।।126।।
पणगादी दोहि जुदा सत्तावीसा त्ति पल्ल देवीगं । तत्तो सत्तुत्तरियं जाव दु आरणच्चुओ कप्पो ।।127।।
देवियों की आयु सत्ताईस पल्य तक दो से युक्त पाँच आदि पल्य प्रमाण अर्थात् सौधर्म स्वर्गमें पाँच, ईशान में सात, सनत्कुमार में नौ, माहेन्द्र में ग्यारह, इस प्रकार दो पल्य की उत्तरोत्तर वृद्धि होकर सहस्रार कल्प में सत्ताईस पल्य प्रमाण है। इसके आगे आरण- अच्युत कल्प तक उत्तरोत्तर सात पल्य अधिक होते गये हैं ।। 127।।