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धवला उद्धरण
192 पुरुषों का देव पर्याय काल पुरिसेसु सदपुधत्तं असुरकुमारेसे होदि तिगुणेण। तिगुणे णवगेवज्जे सग्गठिदी सग्गठिदी छग्गुणं होदि।।128।।
पुरुषवेदियों में रहने का काल शतपृथक्त्व (सागरोपम) प्रमाण है। असुरकुमारों में तीन बार उत्पन्न होता है। नौ ग्रैवेयकों में तीन बार उत्पन्न होता है। स्वर्गों की स्थिति छहगुणी होती है।।128।।
जह चिय मोराण सिह णायाणं लंछणं व सत्थाणं। मुक्खारूढ गणिय तत्थब्भासं तदो कुज्जा।।129।।
जिस प्रकार मयूरों की शिख उनका मुख्यतया से रूढ लक्षण है, उसी प्रकार न्याय शास्त्रों का मुख्य लक्षण गणित है। अतएव इसका अभ्यास करना चाहिये।।129।।