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धवला उद्धरण
190 अनुयोग की निरुक्ति में सूची, मुदा, प्रतिघ, सम्भवदल और वर्तिका, ये पाँच दृष्टान्त हैं।।119।। लिंगत्तियं वयणसम अवणिवण्णिदमिस्सयं चेव। अज्झत्थं च बहित्थं पचक्खपरोक्ख सोलसिमे।।12011
(तीनों) वचनों के साथ तीन लिंग, अपनीत, उपनीत व मिश्र अर्थात् उदात्त. अनदात्त व स्वरित (?). अभ्यन्तर. बाह्य. प्रत्यक्ष और परोक्ष.ये सोलह हैं।।120।।
एयादीया गणण दोहादीया वि जाण संख त्ति। तीयादीणं णियमा कदि त्ति सण्णा दु बोद्वव्वा।।121।।
एक आदिक को गणना और दो आदि को संख्या समझो तथा तीन आदिक की नियम से 'कृति' यह संज्ञा जानना चाहिये।।121।।
पंचेन्द्रिय काल सोधम्म माहिदे पढमपुढवीए होदि चदुगुणिदं। बम्हादि आरणच्चुद पुढवीणं होदि पचगुणं।।122।।
सौधर्म, माहेन्द्र और प्रथम प्रथिवी में चार बार और ब्रह्म कल्प से लेकर आरण अच्युत कल्पों तथा द्वितीयादि पृथिवियों में पाँच बार उत्पन्न होने पर उक्त पंचेन्द्रिय काल पूर्ण होता है।।122।। पढद्यमपुढवीए चदुरो पण (पण) सेसासु होंति पुढवीसु। चदु चदु देवेसु भवा वावीसं ति सदपुघत्तं।।123।।
प्रथम पृथिवी में चार भव और शेष पृथिवियों में पाँच-पाँच भव होते हैं। बाईस सागरोपम स्थिति तक के देवों में चार भव होते हैं। इस प्रकार पंचेन्द्रिय पर्यायकाल सागरोपम शत पृथक्त्व प्रमाण होता है।।123।।