________________
धवला पुस्तक 7
149
दर्शन का स्वरूप
जं सामण्णगहणं भावाणं णेव कट्टु आयारं । अविसेसिदूण अत्थे दंसणमिदि भण्णदे समए ।।19।। वस्तुओं का आकार न करके व पदार्थों में विशेषता न करके जो सामान्य का ग्रहण किया जाता है, उसे ही शास्त्र में दर्शन कहा है ।। 23 ।।
चक्षु और अचक्षु दर्शन
चक्खूण जं पयासदि दिस्सदि तं चक्खुदंसणं वेंति । दिट्ठस्स य जं सरणं णायव्वं तं अचक्खु त्ती ॥20॥
जो चक्षु इन्द्रियों का आलम्बन लेकर प्रकाशित होता है या दिखता है, उसे चक्षु दर्शन कहते हैं और जो अन्य इन्द्रियों से दर्शन होता है उसे अचक्षु दर्शन जानना चाहिये।।20।।
अवधि दर्शन का लक्षण
परमाणु आदियाइं अंतिमखंध त्ति मुत्तिदव्वाई | तं ओहिदंसणं पुण जं पस्सदि ताणि पच्चक्खं।।21।। परमाणु से लेकर अन्तिम स्कन्ध तक जितने मूर्तिक द्रव्य हैं उन्हें जो प्रत्यक्ष देखता है वह अवधिदर्शन है ||21|
मिथ्यात्वी का लक्षण
एवं सुत्तपसिद्धं भांति जे केवलं ण चत्थि त्ति । मिच्छादिट्ठी अण्णो को तत्तो एत्थ जियलोए।।22।। इस प्रकार सूत्र द्वारा प्रसिद्ध होते हुए भी जो कहते हैं कि केवल दर्शन नहीं है, उनसे बड़ा इस जीव लोक में कौन मिथ्यात्वी होगा ? ।। 22 ।।