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धवला उद्धरण
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कालोत्ति समत्तमणिओगद्दारं
मुहभूमीण विसेसो उच्छयभजिदो दु जो हवे वड्ढी। वड्ढी इच्छिगुणिदा मुहसहिया होइ वड्ढिफलं।।1।।
मुख और भूमिका जो विशेष अर्थात् अन्तर हो उसे उत्सेध से भाजित कर देने पर जो वृद्धि का प्रमाण आता है, उस वृद्धि को अभीष्ट से गुणा करके मुख में जोड़ने पर वृद्धि का फल प्राप्त हो जाता है।।1।। इगितीस सत्त चत्तारि दोणि एक्केक्क छक्क एक्काए। उदुआदिविमाणिंदा तिरधियसट्ठी मुणेयव्वा।।2।।
सौधर्म-ईशान कल्पों में इकतीस विमान प्रस्तर हैं, सानत्कुमारमाहेन्द्र कल्पों में सात, ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर में चार, लांतव-कापिष्ठ में दो, शुक्र-महाशुक्र में एक, शतार-सहस्रार में एक, आनत-प्रानत और आरण-अच्युत कल्पों में छह तथा नौ ग्रैवेयकों में एक-एक, अनुदिशों में एक और अनुत्तर विमानों में एक इस प्रकार ऋतु आदिक इन्द्रक विमान तिरेसठ जानना चाहिए।।2।।
दव्वपमाणुगमोत्ति समत्तमणिओगद्दारं
अवहार काल बारस दस अट्ठेव य मूला छ त्तिग दुगं च णिरएसु। एक्कारस णव सत्त य पण य चउक्कं च देवेसु।।1।।
नरकों में द्वितीयादि पृथिवियों का द्रव्य प्रमाण लाने के लिए जगश्रेणी का बारहवां, दशवां, आठवां, छठा, तीसरा और दूसरा वर्गमूल अवहार काल है तथा देवों में सानत्कुमारादि पाँच कल्पयुगलों का द्रव्य प्रमाण लाने के लिए जगश्रेणी का ग्यारहवां, नौवां, सातवां, पाँचवां और चौथा