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धवला उद्धरण
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तथा क्षायिक ज्ञान, इस प्रकार क्षायिक भाव में जिनभाषित पाँच स्थान होते हैं।।8।।
क्षायोपशमिक भाव के स्थान एवं भेद । णाणण्णाणं च तहा दंसण-लद्धी तहेव सम्मत्तं। चारित्तं देसजमो सत्तेव य हो ति ठाणाई।।9।।
ज्ञान, अज्ञान, दर्शन, लब्धि, सम्यक्त्व, चारित्र और देशसंयम, ये सात स्थान क्षायोपशमिकभाव में होते हैं।।9।।
पारिणामिक भाव के स्थान एवं भेद एयं ठाणं तिण्णि वियप्पा तह पारिणामिए होंति। भव्वाभव्वा जीवा अत्तवणदो चेव बोद्धव्वा।।10।।
पारिणामिकभाव में स्थान एक तथा भव्य, अभव्य और जीवत्व के भेद से तीन भेद होते हैं। ये विकल्प आत्मा के असाधारण भाव होने से ग्रहण किये गये जानना चाहिए।।10।।
भावों के उत्तर भेद इगिवीस अट्ठ तह णव अट्ठारस तिण्णि चेव बोद्धव्वा। ओदइयादी भावा वियप्पदो आणुपुव्वीए।।11।।
औदयिक आदि पाँच भाव उत्तर भेदों की अपेक्षा आनुपूर्वी से इक्कीस, आठ, नौ, अठारह और तीन भेद वाले हैं, ऐसा जानना चाहिए।।11।।
सन्निपात फल एकोत्तरपदवृद्धो रूपाये जितं च पदवृद्ध। गच्छः संपातफलं समाहतः सन्निपातफलम्।।12।। एक एक उत्तर पद से बढ़ते हुए गच्छकों रूप (एक) आदि पद प्रमाण