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धवला पुस्तक 5
123 बढ़ाई हुई राशि से भाजित करे और परस्पर गुणा करे, तब सम्पातफल अर्थात् एकसंयोगी, द्विसंयोगी आदि भंगों का प्रमाण आता है तथा इन एक, दो, तीन आदि भंगों को जोड़ देने पर सन्निपातफल अर्थात् सान्निपातिक भंग प्राप्त हो जाते हैं।।12।।
शंख का क्षेत्रफल मिच्छत्ते दस भंगा आसादण-मिस्सए वि बोद्धव्वा। तिगुणा ते चदुहीणा अविरदसम्मस्स एमेव।।13।। देसे खओवसमिए विरदे खवगाण ऊणवीसं तु। ओसामगेसु पुध पुध पणतीसं भावदो भंगा।।14।। मिथ्यात्व गणस्थान में उक्त भावों सम्बन्धी दश भंग होते हैं। सासादन और मिश्र गुणस्थान में भी इसी प्रकार दश-दश भंग जानना चाहिए। अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में वे ही भंग त्रिगुणित और चतीन अर्थात (1013-4 =26) छब्बीस होते हैं। इसी प्रकार ये छब्बीस भंग क्षायोपशमिक देशविरत, प्रमत्तसंयत, अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में भी होते हैं। क्षपक श्रेणी वाले चारों क्षपकों के उन्नीस भंग होते हैं। उपशम श्रेणी वाले चारों उपशामकों में पृथक्-पृथक् पैंतीस भंग भाव की अपेक्षा होते हैं।।13-14।।
एक्को मे सस्सदो अप्पा णाण-दसणलक्खणो। सेसा दु बाहिरा भावा सव्वे संजोगलक्खणा।।1।।
ज्ञान-दर्शन लक्षणात्मक मेरा आत्मा एक है, शाश्वत (नित्य) है। शेष सर्व संयोगलक्षणात्मक भाव बाहरी हैं।।1।।