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धवला पुस्तक 5
121 क्रम की अपेक्षा काल का प्रमाण विपरीत अर्थात् उत्तरोत्तर हीन है।।3-4।।
पाँच भाव ओदइओ उवसमिओ खइओ तह वि य खओवसमिओ य। परिणामिओ दु भावो उदएण दु पोग्गलाणं तु।।5।।
औदयिकभाव, औपशमिकभाव, क्षायिकभाव, क्षायोपशमिकभाव और पारिणामिकभाव, ये पाँच भाव होते हैं। इनमें पुद्गलों के उदय से (औदयिकभाव) होता है।।5।।
औदयिक भाव के स्थान/भेद गदि-लिंग-कसाया वि य मिच्छादसणमसिद्धदण्णाणं। लेस्सा असंजमो चिय होंति उदयस्स ट्ठाणाई।।6।।
गति, लिंग, कषाय, मिथ्यादर्शन, असिद्धत्व, अज्ञान, लेश्या, असंयम, ये औदयिक भाव के आठ स्थान होते हैं।।6।।
औपशमिक भाव के स्थान एवं विकल्प सम्मत्तं चारित्तं दो च्चिय ट्ठाणइमुवसमे होति। अट्ठवियप्पा य तहा कोहाईया मुणेदव्वा।।7।।
औपशमिकभाव में सम्यक्त्व और चारित्र ये दो ही स्थान होते हैं तथा औपशमिकभाव के विकल्प आठ होते हैं, जो कि क्रोधादि कषायों के उशमन रूप जानना चाहिए।।7।।
क्षायिक भाव के स्थान लद्धीओ सम्मत्तं चारित्तं दंसणं तहा णाण। ठाणाइ पंच खइए भावे जिणभासियाई तु।।8।। दानादि लब्धियाँ, क्षायिक सम्यक्त्व, क्षायिक चारित्र, क्षायिक दर्शन