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प्रतिक्रमण-आवश्यक ]
[४७ जीव कर्मगुण करतो नथी, नहि जीवगुण कर्मो करे; अन्योन्यना निमित्तथी परिणाम बेउ तणा बने. ८१. ओ कारणे आत्मा ठरे कर्ता खरे निज भावथी; पुद्गलकरमकृत सर्व भावोनो कदी कर्ता नथी. ८२.
अर्थ :-जीव कर्मना गुणोने करतो नथी तेम ज कर्म जीवना गुणोने करतुं नथी; परंतु परस्पर निमित्तथी बनेना परिणाम जाणो. आ कारणे आत्मा पोताना ज भावथी कर्ता (कहेवामां आवे) छे परंतु पुद्गलकर्मथी करवामां आवेला सर्व भावोनो कर्ता नथी.
णिच्छयणयस्स एवं आदा अप्पाणमेव हि करेदि । वेदयदि पुणो तं चेव जाण अत्ता दु अत्ताणं ॥३॥ आत्मा करे निजने ज ओ मंतव्य निश्चयनय तणुं, वळी भोगवे निजने ज आत्मा अम निश्चय जाणवू. ८३.
अर्थ :-निश्चयनयनो अम मत छे के आत्मा पोताने ज करे छे अने वळी आत्मा पोताने ज भोगवे छे अम हे शिष्य ! तुं जाण.
उवओगस्स अणाई परिणामा तिण्णि मोहजुत्तस्स । मिच्छत्तं अण्णाणं अविरदिभावो य णादव्बो ॥८६॥ छे मोहयुत उपयोगना परिणाम त्रण अनादिना, -मिथ्यात्व ने अज्ञान, अविरतभाव ओ त्रण जाणवा. ८६.
अर्थ :-अनादिथी मोहयुक्त होवाथी उपयोगना अनादिथी मांडीने त्रण परिणाम छे; ते मिथ्यात्व, अज्ञान अने अविरतिभाव (त्रण) जाणवा.
एदेसु य उवओगो तिविहो सुद्धो णिरंजणो भावो । जं सो करेदि भावं उवओगो तस्स सो कत्ता ॥६०॥